आधी रात को अचानक घर से जंगल की तरफ भागी लड़की, पीछे दौड़ते दौड़ते पहुंचे माता-पिता,फिर….
भागमती के पिता रामसजीवन कश्यप ने लोकल 18 को बताया कि 4 जनवरी 2010 की रात, जब सभी सो रहे थे, भागमती ने अपने घर को छोड़कर गांव के पास लीलगर नदी के किनारे जंगल में भोलेनाथ की साधना शुरू कर दी.
विज्ञान और आधुनिकता के इस युग में जहां लोग पूजा-पाठ से दूर होते जा रहे हैं, वहीं छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले के मस्तूरी क्षेत्र में बेटरी गांव की रहने वाली भागमती ने भक्ति और तपस्या की नई मिसाल पेश की है. महज 16 साल की उम्र में भागमती ने भगवान भोलेनाथ की तपस्या में खुद को समर्पित कर दिया. पिछले 14 सालों से लीलगर नदी के किनारे तपस्या में लीन भागमती देवी लोगों के लिए आस्था का केंद्र भी बन चुकी है.
भागमती के पिता रामसजीवन कश्यप ने लोकल 18 को बताया कि 4 जनवरी 2010 की रात, जब सभी सो रहे थे, भागमती ने अपने घर को छोड़कर गांव के पास लीलगर नदी के किनारे जंगल में भोलेनाथ की साधना शुरू कर दी. उनके माता-पिता ने उन्हें समझाने की बहुत कोशिश की, लेकिन भागमती ने तपस्या में लीन रहने का निर्णय किया. भागमती ने परिवार से कहा “मैं भोलेनाथ की तपस्या पूरी किए बिना वापस नहीं आ सकती,” उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा. आखिरकार, उनके माता-पिता ने उनकी साधना का सम्मान करते हुए उसी स्थान पर घर बनाकर रहना शुरू कर दिया.
भागमती के भाई हरनारायण के अनुसार, अब वह प्रतिदिन 12 घंटे तपस्या करती है. सुबह से रात 9 बजे तक उनकी तपस्या का समय तय है. पूजा करने के बाद वह तपस्या से उठकर थोड़ा आराम करती हैं. भागमती बाहरी दुनिया से पूरी तरह कट चुकी हैं. वह किसी से बात नहीं करतीं, लेकिन अपने माता-पिता से कभी-कभार कुछ शब्दों में हालचाल पूछ लिया करती हैं. उनकी दिनचर्या और समर्पण उन्हें साधारण लोगों से बिल्कुल अलग बनाते हैं.
हरनारायण ने यह भी बताया कि भागमती ने तपस्या शुरू करने के बाद से अन्न का त्याग कर दिया है. वह केवल फल, दूध और फलों का रस ग्रहण करती हैं. उनके इस त्यागपूर्ण जीवन ने श्रद्धालुओं को उनकी भक्ति के प्रति और अधिक आस्थावान बना दिया है. आज भागमती जहां तप कर रही हैं, वह स्थान भक्तों के लिए एक पवित्र स्थल बन चुका है. देशभर से श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए आते हैं. माना जाता है कि यहां पूजा करने और सच्चे मन से मन्नत मांगने से भोलेनाथ सभी कष्ट हर लेते हैं. भागमती को अब लोग देवी के रूप में पूजते हैं, उनके तप का यह स्थान आस्था और भक्ति का प्रतीक बन गया है.
श्रद्धालुओं का मानना है कि तपस्वी भागमती के तप और भगवान शिव की कृपा से उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. उनकी भक्ति के सम्मान में उस स्थान पर एक मंदिर भी बना दिया गया है, जहां हर दिन भक्तों का तांता लगा रहता है. भागमती की तपस्या ने यह साबित कर दिया है कि सच्चे समर्पण और भक्ति से कुछ भी संभव है.