आपको शायद नही होगी शिवलिंग की इन अनसुनी बातों के बारे में कोई जानकारी, जानकर रह जाएंगे हैरान
शिवलिंग पर जल इत्यादि चढ़ाते समय आपके मन में ये बात कभी आई है कि इसका आकार ऐसा क्यों है. इसकी स्थापना करने के पीछे की वजह क्या है. इसे भगवान शिव से ही जोड़कर क्यों देखा जाता है. शिवलिंग के बारे में ऐसी ही कई अनसुनी और अनकही बातों के बारे में आज आपको जानकारी देंगे.
निचला भाग
शिवलिंग तीन भागों में विभाजित होता है. सबसे नीचे का हिस्सा भूमि से जुड़ा होता है. मध्य भाग समतल होता है और सबसे ऊपर का हिस्सा अंडाकार होता है और इसकी ही पूजा की जाती है. ब्रह्मा जी को सृष्टि का रचियता माना जाता है, इसलिए शिवलिंग का सबसे निचला हिस्सा ब्रह्मा जी को दर्शाता है, क्योंकि सृष्टि के रचनाकार से ही शिवलिंग की शुरुआत होती है.
मध्य और ऊपरी भाग
शिवलिंग के बीच का हिस्सा या मध्य भाग सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु को समर्पित होता है. इसका अर्थ होता है कि भगवान विष्णु सृष्टि की रक्षा कर रहे हैं. वहीं, सबसे ऊपरी भाग, जो अंडाकार आकार में होता है, वह भगवान शिव को दर्शाता है. इसका मतलब अनंतता और उन्नति से हैं.
प्रकार
शिवलिंग को दो प्रकारों में विभाजित किया गया है. एक उल्का शिवलिंग और दूसरा पारद शिवलिंग. वहीं, पौराणिक धार्मिक ग्रंथों में शिवलिंग के 6 प्रकार बताए गए हैं. स्वयंभू शिवलिंग, मनुष्य शिवलिंग, बर्फ शिवलिंग, देवलिंग और असुर लिंग.
ब्रह्मांड की पूजा
मान्यता है कि शिवलिंग की पूजा करने से पूरे ब्रह्मांड की पूजा हो जाती है. एक तो इसमें त्रिदेवों का वास होता है और दूसरा शिवजी ही समस्त जगत के मूल है. शिव का अर्थ‘परम कल्याणकारी’ होता है और ‘लिंग’ का मतलब ‘सृजन’ से होता है.