इंसान की आत्मा का वजन आखिर कितनी होता है, इस वैज्ञानिक ने किया बड़ा खुलासा, जानिए 

प्राचीन मिस्र के लोगों का मानना था कि मरने के बाद इंसान एक लंबे सफर पर निकल जाता है। हालाकिं ये सफर बेहद मुश्किल होता है जिसमें वह सूर्य देवता की नाव पर सवार होकर फॉल ऑफ डबल ट्रूथ’ पहुंचता है। किंवदंतियों के मुताबिक, सच्चाई का पता लगाने वाले इस हॉल में आत्मा का लेखा-जोखा देखा जाता है और उसका फैसला होता है यह सच और न्याय की देवी की कलम के वजन की तुलना इंसान के दिल के वजह से की जाती है। प्राचीन मिस्र के लोग इस बात को मानते हैं कि इंसान के सभी भले और बुरे कर्मों का हिसाब उसके दिल पर लिखा जाता है। मगर इंसान ने साधा और निष्कर्ष जीवन बिताया है तो उसकी आत्मा का वजन पंख तरह कम होगा.

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मिस्र की इस प्राचीन मान्यता की एक झलक 1907 में जनरल ऑफ द अमेरिकन सोसाइटी ऑफिस में छपे हुए एक शोध में मिली है। ‘हाइपोथेसिस ऑन द सबस्टेन्स ऑफ द सोल अलॉन्ग विद एक्सपेरिमेन्टल एविडेन्स फॉर द एग्जिस्टेंस ऑफ सैड सब्जेक्ट’ नाम के इस शोध में इंसान के मरने के बाद उसकी आत्मा से जुड़े प्रयोग पर चर्चा की गई थी।

इस शोध से जुड़ा एक लेख न्यूयॉर्क टाइम्स में मार्च 1960 में भी छपा हुआ था जिसमें स्पष्ट तौर पर लिखा गया था कि डॉक्टरों को लगता है कि आत्मा का भी निश्चित वजन होता होगा इसमें डॉक्टर डंकन नाम के एक फिजिशन के बारे में चर्चा की गई थी।

यह डॉक्टर जहां काम करते थे वहां आए दिन वह लोगों की मौत को देखते थे। अस्पताल में वजन मापने की मशीन देखकर उनके दिमाग में इंसान की आत्मा का वजन मापने का ख्याल आया। यॉर्क टाइम्स में छपे लेख के मुताबिक इस घटना के 6 साल बाद शोध का विषय लोगों के सामने आया और वह यह था कि यह जानना कि इंसान के मरने के बाद जब उसकी आत्मा शरीर से अलग होती है तो उसके शरीर में क्या क्या बदलाव आते हैं।

उनके शोध के विषय का नाता प्राचीन मिस्र के लोगों की मान्यता को साबित करना या फिर मिश्र के देवी देवताओं के बारे में कुछ जानना कतई नहीं था। लेकिन विषय वस्तु जरूर उसी प्राचीन मान्यता से मेल खाती थी। आप समझ सकते हैं कि उन्होंने अपने शोध की शुरुआत की यानी वो आत्मा के होने या न होने पर कोई सवाल नहीं कर रहे थे। लेकिन उनके शोध के नतीजे में कहीं न कहीं इस बात को विज्ञान के स्तर पर मान्यता देने की संभावना जरूर थी।

डॉक्टर डंकन मैकडॉगल ने एक बेहद हल्के वजन वाले फ्रेम का एक खास तरीके का बिस्तर बनाया। जो अस्पताल में मौजूद उस बड़े तराजू पर चेक किया उन्होंने तराजू को इस तरह से बैलेंस किया कि

वजन में एक ओंस कम बदलाव को मापा जा सके। जो लोग गंभीर रूप से बीमार होते थे या उनके बचने की कोई उम्मीद नहीं होती थी उन्हें इस बिस्तर पर लेटाकर उनके मरने की प्रक्रिया को करीब से देखा जाता था शरीर के वजन में हो रहे किसी भी तरह के बदलाव हो वह अपनी डायरी में लिखा करते थे इस दौरान हुई हम मानते हुए कि वजन का हिसाब भी किया करते रहते थे कि मरने पर शरीर से पानी खून पसीने मल मूत्र या ऑक्सीजन नाइट्रोजन में भी बदलाव होंगे और काम किया करते थे। और वह सब अलग-अलग हिसाब लिखा करते थे।

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