एक आश्रम में एक संत अपने शिष्य के साथ रहते थे, एक दिन शिष्य ने संत से पूछा कि गुरुजी हमारे जीवन में…..

गुरु का महत्व सबसे अधिक बताया गया है। जो हमें सही-गलत का अंतर समझाते हैं, धर्म-अधर्म का ज्ञान देते हैं, वही गुरु कहलाते हैं। शिक्षा के बिना व्यक्ति अज्ञानी रह जाता है और अज्ञान की वजह से लोग रस्सी को भी सांप समझ लेते हैं। इस संबंध में लोक कथा प्रचलित है। जानिए ये लोक कथा…

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पुराने समय में एक संत आश्रम में रहते थे। संत के एक शिष्य भी रहता था। एक दिन उसने संत से पूछा कि गुरुजी हमारे जीवन में शिक्षा क्यों जरूरी है?

संत ने कहा कि एक दिन तुम्हें खुद ही इस प्रश्न का उत्तर मिल जाएगा। इसके बाद काफी दिन बीत गए। एक रात संत ने शिष्य को एक पुस्तक दी और कहा कि तुम इसे कमरे में रख दो। शिष्य उस पुस्तक को लेकर गुरु के कमरे में गया। कमरे में रोशनी नहीं थी।

शिष्य कमरे में गया तो उसके पैरों में कुछ महसूस हुआ। उसे लगा कि कमरे में सांप है। वह तुरंत दौड़कर बाहर आ गया। शिष्य ने संत को बताया कि आपके कमरे में सांप है। गुरु ने कहा कि तुम्हें कोई भ्रम हुआ होगा। कमरे में सांप कैसे आ सकता है? लेकिन, शिष्य ने फिर अपनी बात दोहराई।

गुरु ने शिष्य से कहा कि दीपक जलाकर कमरे में ले जाओ। अगर सांप होगा तो रोशनी देखकर वहां से चला जाएगा। गुरु की बात मानकर शिष्य कमरे में पहुंचा। वहां दीपक रोशनी में उसने एक रस्सी देखी जो जमीन पर रखी हुई। शिष्य गलती से रस्सी को ही सांप समझ बैठा था।

बाहर आकर शिष्य ने गुरु को पूरी बात बताई। गुरु ने कहा कि पुत्र ये संसार भी एक अंधेरे कमरे की तरह ही है। यहां अगर हमारे साथ ज्ञान का प्रकाश नहीं होगा तो हम रस्सी को सांप समझने लगते हैं। अगर हम शिक्षा ग्रहण नहीं करेंगे तो इस संसार में अच्छे-बुरे का, सही-गलत का अंतर समझ नहीं सकेंगे। शिक्षा के बिना पूरे जीवन में भ्रम बना रहेगा।

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