एक आश्रम में गुरु और शिष्य दोनों साथ में रहते थे, वे खिलौनों बेचकर अपना जीवन यापन करते थे, गुरु के मार्गदर्शन की वजह से शिष्य काफी अच्छे खिलौने बनाता था और उसके खिलौने……

हमारे शास्त्रों में गुरु का स्थान भगवान से भी ऊंचा बताया गया है. गुरु हमारी गलतियों को सुधारते हैं और हमारी प्रतिभा को निखारने में मदद करते हैं. गुरु हमें ज्ञान देते हैं, जिसकी बदौलत हम अपना जीवन सुख चैन से बिता पाते हैं. गुरु के महत्व को बताने वाली कई कथाएं प्रचलित हैं. एक ऐसी ही कथा है जो आपको गुरु का महत्व समझाएगी.

एक आश्रम में गुरु और शिष्य रहते थे. दोनों खिलौने बनाकर अपना जीवन यापन करते थे. गुरु के मार्गदर्शन में शिष्य बहुत अच्छे खिलौने बनाना सीख गया और उसके खिलौने ज्यादा कीमत में बिकते थे. फिर भी गुरु उससे हर रोज यही कहते थे कि बेटा और मन लगाकर काम करो. अभी भी तुम्हें पूरी कुशलता प्राप्त नहीं हुई है. शिष्य गुरु की यह बात सुनकर यह सोचता था कि गुरुजी के खिलौने कम दामों में बिकते हैं, इसी वजह से वह मुझसे जलते हैं और यह सारी बातें कहते हैं.

कुछ दिन तक लगातार गुरु ने शिष्य से ऐसा कहा. एक दिन शिष्य ने गुस्से में गुरु से कहा कि गुरु जी मैं आपसे अच्छे खिलौने बनाता हूं. मेरे खिलौने आपसे ज्यादा कीमत में बिकते हैं. लेकिन फिर भी आप मुझे हमेशा यही कहते हैं कि और अच्छे खिलौने बनाओ. गुरु समझ गए कि शिष्य में अहंकार आ गया है, वह क्रोधित हो गया है.

तब उन्होंने शांत स्वर में शिष्य से कहा कि बेटा जब मैं तुम्हारी उम्र का था तो मेरे खिलौने भी मेरे गुरु के खिलौनों से ज्यादा कीमत में बिकते थे. एक दिन मैंने भी तुम्हारी तरह ही अपने गुरु से यह बात कह दी जिसके बाद से गुरु ने मुझे सलाह देना बंद कर दिया और मेरी कला का विकास नहीं हुआ. मैं नहीं चाहता कि तुम्हारे साथ भी ऐसा ही हो. इसीलिए मैं तुमसे हर रोज कहता हूं.

गुरु की बात सुनकर शिष्य शर्मिंदा हुआ और उसने गुरु से क्षमा मांग ली. इसके बाद वह गुरु आज्ञा का पालन करने लगा और धीरे-धीरे अपनी कला की वजह से दूर-दूर तक प्रसिद्ध हो गया.

कथा की सीख

इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें अपने गुरु को सम्मान देना चाहिए. गुरु जो सलाह दें, उस पर गंभीरता से काम करना चाहिए. तभी हमें सफलता मिलती है.

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