एक ऐसा मंदिर जहां मूर्ति एक और मंदिर दो हैं, जब महाभारत युद्ध की तैयारी चल रही थी तो श्री कृष्ण ने भीम को कुल देवी से विजय का आशीर्वाद लेने भेजा था, भीम ने मां को…..

हमारे देश में ऐसे कई मंदिर हैं जो कि धर्म और विज्ञान दोनों के लिए पहले बने हुए हैं और इन मंदिरों के पीछे का तिलिस्‍म आज तक कोई नहीं समझ पाया है। ऐसा ही एक मंदिर है मां भीमेश्‍वरी देवी का अनोखा मंदिर है। जानकार बताते हैं कि यहां मूर्ति तो एक है, लेकिन मंदिर दो हैं। इस मंदिर का संबंध महाभारत काल से है। आइए जानते हैं क्‍या है इस मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा और कहां स्थित है यह मंदिर…

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मां भीमेश्‍वरी मंदिर का इतिहास

मंदिर का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा है। मान्यता के अनुसार मां की मूर्ति को पांडु पुत्र भीम पाकिस्तान के हिंगलाज पर्वत से लेकर आए थे। जब कुरुक्षेत्र में महाभारत युद्ध की तैयारी चल रही थी तो भगवान कृष्ण ने भीम को कुल देवी से विजय का आशीर्वाद लेने भेजा था। भीम ने मां को साथ चलने का आग्रह किया तो उन्होंने कहा कि तुम मुझे गोद में रखोगे। जहां भी उतारोगे मैं वहां से आगे नहीं जाऊंगी। भीम ने शर्त मान ली और गोद में उठाकर युद्ध भूमि की तरफ चले। बेरी कस्बे से गुजरते समय भीम को लघुशंका लग गई, जिस पर उन्हें मां को उतारना पड़ा। बाद में चलने के लिए भीम उठाने लगे तो मां ने उन्हें वचन याद दिलाया। फिर भीम ने पूजा कर बेरी के बाहर मां को स्थापित किया। तभी से मां को भीमेश्वरी देवी के नाम से जाना जाता है। यहां मां की मूर्ति चांदी के सिंहासन पर विराजमान है।

मूर्ति एक और मंदिर हैं दो

चैत्र व शारदीय नवरात्र पर यहां लाखों श्रद्धालु आते हैं। यह ऐसा अनोखा मंदिर है, जहां मां की मूर्ति तो एक है पर मंदिर दो हैं। मां भीमेश्वरी देवी की प्रतिमा को सुबह 5 बजे बाहर वाले मंदिर में लाया जाता है। दोपहर 12 बजे मूर्ति को पुजारी अंदर वाले मंदिर में लेकर जाते हैं। मान्यता है कि मां रात भर अंदर वाले मंदिर में आराम करती हैं। मां का मंदिर जंगलों में था। तब ऋषि दुर्वासा ने मां से विनती की थी कि कि वे उनके आश्रम में आकर भी रहें। तभी से दो मंदिरों की परंपरा चल रही है। आज भी यहां पर दुर्वासा ऋषि द्वारा रचित आरती से पूजा की जाती है।

गांधारी ने करवाया था निर्माण

हरियाणा के झज्‍जर में स्थित इस मंदिर का निर्माण गांधारी ने खुद करवाया था। यह मंदिर छोटी काशी के नाम से प्रसिद्ध बेरी में स्थित है। यहां हर साल दोनों नवरात्र के 9 दिनों में मेले का आयोजन होता है। कहते हैं कि महाभारत के युद्ध की समाप्ति के बाद दुर्योधन की मां और धृतराष्‍ट्र की पत्‍नी गांधारी ने यहां मंदिर का निर्माण करवाया।

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