एक नदी के किनारे एक साधु झोपड़ी में रहते थे, एक दिन उन्हें नदी में एक सेब तैरता हुआ दिखाई दिया, उन्होंने तुरंत उस सेब को उठाया और खाने लगे, तभी उनके मन में विचार आया कि मुझे बिना मेहनत किए यह सब कैसे मिल गया……
एक साधु की नदी के किनारे के पास झोपड़ी थी। एक दिन साधु को नदी में तैरता हुआ सेब दिखाई दिया तो उसने तुरंत सेब निकाला और उसको खाने लग गया। तभी उसे विचार आया कि यह सेब मुझे बिना मेहनत किए मिला है। इस पर मेरा अधिकार नहीं है। मुझे इस सेब को सही मालिक को लौटा देना चाहिए।
यह विचार करके वह साधु उस सेब को लौटाने के लिए उसके मालिक को खोजने लगा। वह मालिक को खोजते-खोजते फलों के बाग तक पहुंच गया। बाग के माली ने कहा कि इस बाग की मालिक कोई राजकुमारी है।
साधु राजकुमारी से मिलने के लिए राजमहल गए। साधु ने राजकुमारी से कहा कि आपका यह सेब तैरते-तैरते मुझ तक पहुंच गया। मैं इस सेब को आपको लौटाने के लिए आया हूं।
राजकुमारी को यह बात सुनकर बहुत ही आश्चर्य हुआ। उसने सोचा कि यह साधु सेब को लौटाने के लिए इतनी दूर से मेरे पास आया है। राजकुमारी ने संत से पूछा कि तुमने इस सेब को लौटाने के लिए इतनी मेहनत क्यों की।
संत ने कहा कि मैंने यह मेहनत सेब को लौटाने के लिए नहीं बल्कि अपने स्वाभिमान के लिए की। अगर मैं सेब को खा लेता तो मेरे पूरे जीवन की की हुई पूरी तपस्या व्यर्थ हो जाती। राजकुमारी संत की ईमानदारी से बहुत ही प्रभावित हुई। राजकुमारी ने उसको अपने पिता से कहकर राजगुरु बना दिया।
कहानी की सीख
इस कहानी से हमें सीखने को मिलता है कि कभी भी किसी दूसरे की धन-संपत्ति पर अपना हक नहीं जमाना चाहिए। सभी को ईमानदार रहना चाहिए और मेहनत करके धन-संपत्ति इकठ्ठी करनी चाहिए।