एक बार एक लकड़हारा परमहंस जी से मिलने आया और बोला मैं एक लकड़हारा हूं, मेरे जीवन कई परेशानियां हैं, मैं अपने परिवार का निर्वाह ठीक प्रकार से नहीं कर पाता हूं, परमहंस जी ने कहा आप लकड़ियां कहां काटते…..
स्वामी विवेकानंद के गुरु का नाम रामकृष्ण परमहंस था। उनके जीवन के कई सारे ऐसे प्रसंग प्रचलित है जिनमें सुखी और सफल जीवन के सूत्र छिपे हुए हैं। आज हम आपको उनके ऐसे ही प्रेरक प्रसंग के बारे में बताने जा रहे हैं।
एक दिन परमहंस के पास एक लकड़हारा आया और उसने कहा कि मैं लकड़हारा हूं। मेरे जीवन में कई सारी परेशानियां है। मैं धन की कमी की वजह से बहुत परेशान रहता हूं। मेरे परिवार का निर्वाह ठीक प्रकार से नहीं हो पाता है। परमहंस ने पूछा कि लकड़ियां कहां काटते हो। लकड़हारे ने बताया कि मैं जंगल में लकड़ियां काटता हूं।
स्वामी जी ने बताया कि अभी तुम्हें थोड़ा आगे और बढ़ने की जरूरत है। लकड़हारे ने स्वामी जी की बात मानी और अगले दिन जब वो जंगल में लकड़ी काटने गया तो वह आगे बढ़ गया। उसे आगे चलकर चंदन के पेड़ मिले जिसे देख कर वह बहुत खुश हुआ।
वह लौटकर परमहंस जी के पास आया और उनको धन्यवाद कहा। स्वामी जी ने कहा कि तुम अभी थोड़ा और आगे बढ़ो। वह अगले दिन गया और फिर थोड़ा आगे बढ़ा। उसे इस बार चांदी की खान मिल गई। अब वो और ज्यादा खुश हो गया।
वह फिर स्वामी जी के पास आया और उनको पूरी बात बताई। स्वामी जी ने लकड़हारे को फिर वही बात कही। लकड़हारा चांदी की खान से थोड़ा आगे बढ़ा तो उसे सोने की खान मिल गई।
परमहंस जी के पास जाकर उसने धन्यवाद कहा। लेकिन परमहंस जी ने कहा कि यह तो तुम्हारे सांसारिक जीवन के लिए था। लेकिन तुमको अब इसी प्रकार भक्ति के मार्ग पर आगे बढ़ना होगा। उसी दिन से लकड़हारा परमहंस जी का शिष्य बन गया।
कहानी की सीख
इस कहानी से हमें सीखने को मिलता है कि ज्ञान और कर्म के मार्ग पर हमेशा आगे बढ़ते रहना चाहिए। हमें हर क्षेत्र में प्रयास करना चाहिए। हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। 1 दिन सफलता जरूर मिलेगी।