एक बार एक संत एक सेठ के पास भिक्षा मांगने पहुंचे, सेठ भी स्वभाव से बड़ा धार्मिक था, उसने संत को एक कटोरी चावल दान कर दिए, सेठ ने संत से कहा गुरुजी मैं आपसे कुछ पूछना चाहता हूं, संत ने कहा ठीक है पूछो……

एक प्राचीन कथा के मुताबिक, पुराने समय में एक सेठ के पास संत भिक्षा मांगने पहुंचे. सेठ बहुत ही धार्मिक था. उसने संत को एक कटोरी चावल दान कर दिए और संत से कहा कि गुरु जी मैं आपसे कुछ पूछना चाहता हूं. संत ने सेठ से कहा- पूछो, तुम क्या पूछना चाहते हो.

सेठ ने संत से पूछा कि गुरु जी मैं यह जानना चाहता हूं कि आखिर लोगों में लड़ाई-झगड़ा क्यों होता है. संत ने सेठ से कहा कि मैं यहां भिक्षा लेने आया हूं, तुम्हारे प्रश्नों का उत्तर देने नहीं. यह सुनते ही सेठ गुस्सा हो गया और सोचने लगा कि यह कैसा संत है. मैंने इसे दान दिया और यह मुझसे ऐसे बात कर रहा है. सेठ गुस्से में आ गया और उसने संत को खरी खोटी सुना दी.

कुछ देर बाद जब सेठ का गुस्सा शांत हो गया तो संत ने सेठ से कहा कि जैसे मैंने तुम्हें कुछ अप्रिय बोला तो तुम गुस्से में आ गए. गुस्से में तुमने मुझ पर चिल्लाना शुरू कर दिया. ऐसी स्थिति में अगर मैं भी तुम पर गुस्सा करने लगता तो बात बहुत आगे बढ़ जाती हो और हम लोगों के बीच झगड़ा हो जाता.

क्रोध ही हर झगड़े की जड़ है. अगर हम कभी भी क्रोध नहीं करेंगे तो वाद-विवाद नहीं होगा. इसीलिए हमें अपने क्रोध पर काबू करना चाहिए. तभी हम सुख-शांति से रह पाएंगे.

कथा की सीख

इस कहानी से हमें यह सीखने को मिलता है कि हमें हर परिस्थिति में शांत रहना चाहिए. अगर हम गुस्सा करेंगे तो इससे हमें मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा. क्रोध से रिश्तो में दूरियां आ जाती हैं और हमारी सुख-शांति भी नष्ट हो जाती है.

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