एक बार सफर के दौरान महाकवि कालिदास को प्यास लगी तो वे एक कुएं के पास गए, वहां एक महिला कुएं से पानी भर रही थी, कालिदास जी ने उस महिला से कहा मुझे प्यास लगी है कृपया पीने के लिए पानी दीजिए…….

एक बार महाकवि कालिदास कहीं जा रहे थे. रास्ते में उन्हें प्यास लगी तो वे एक कुएं के पास गए, जहां कोई महिला पानी भर रही थी. कालिदास ने उस महिला से कहा कि मुझे प्यास लगी है, कृपया पीने के लिए पानी दीजिए. महिला ने उनसे कहा कि मैं आपको नहीं जानती, आप अपना परिचय दीजिए. मैं इसके बाद ही आपको पानी दूंगी.

कालिदास ने कहा कि मैं मैं मेहमान हूं. महिला बोली कि आप मेहमान कैसे हो सकते हैं. इस संसार में दो ही मेहमान है, एक धन और दूसरा यौवन. यह बात सुनकर कालिदास हैरान हुए. उन्होंने महिला से कहा कि मैं सहनशील हूं. महिला बोली- इस संसार में दो ही सहनशील है. यह धरती जो पापी और पुण्यात्मा को बोझ ढ़ोती है. दूसरे पेड़ है, जो पत्थर मारने पर भी फल देते हैं.

कालिदास ने उस महिला से फिर कहा कि मैं हठी हूं. महिला बोली- आप झूठ बोल रहे हैं. इस संसार में हठी दो ही है. एक हमारे नाखून और दूसरी बाल. इन्हें बार-बार काटो, फिर भी यह बढ़ जाते हैं. हारकर कालिदास ने महिला से कहा कि मैं मूर्ख हूं. इस पर महिला ने कहा कि मूर्ख भी दो ही हैं. एक राजा जो बिना योग्यता के सब पर राज करता है. दूसरा दरबारी जो राजा को खुश करने के लिए हर बार उनकी झूठी प्रशंसा करता है.

इसके बाद कालिदास महिला के चरणों में गिर पड़े और पानी के लिए याचना करने लगे. तब महिला ने उनसे कहा कि उठो वत्स. कालिदास ने ऊपर देखा तो वहां देवी सरस्वती खड़ी थी. देवी ने कहा कि शिक्षा से ज्ञान मिलता है ना कि घमंड. तुझे अपने ज्ञान का घमंड हो गया था. इसलिए तेरा घमंड तोड़ने के लिए मुझे यह सब करना पड़ा. कालिदास समझ गए कि उन्होंने गलत किया. उन्होंने देवी से क्षमा मांगी. इसके बाद देवी प्रसन्न होकर अंतर्ध्यान हो गई. कालिदास पानी पीकर आगे बढ़ गए और उन्होंने कभी घमंड नहीं किया.

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