एक राजा अपने मंत्री को बहुत इज्जत देता था, और यही बात मंत्री को परेशान करती थी कि राजा उसे इतना मान-सम्मान क्यों देता है, मंत्री ने ये पता करने के लिए राजकोष से स्वर्ण…….

एक राजा को अपनी महामंत्री की ज्ञानता और योग्यता पर पूरा विश्वास था। राजा अपने महामंत्री का पूरा सम्मान करते थे। वह महामंत्री प्रजा में भी बहुत लोकप्रिय था। एक दिन महामंत्री के मन में सवाल आया की राजा और दूसरे लोग मेरा इतना सम्मान क्यों करते हैं। मंत्री ने अपने सवाल का उत्तर जानने के लिए 1 उपाय खोजा।

जब महामंत्री अगले दिन दरबार से लौटकर आ रहे थे तो उन्होंने राजकोष से एक स्वर्ण मुद्रा चुरा ली। लेकिन उसको कोषागार के रक्षक ने देखकर भी नजरंदाज कर दिया। दूसरे दिन भी मंत्री ने दो स्वर्ण मुद्रा चुराई। उस दिन भी राजकोष के अधिकारी ने मंत्री को देख लिया। लेकिन उसने कुछ नहीं कहा। वह सोचने लगा मंत्री को कुछ जरूरत होगी वे बाद में बता देंगे।

तीसरे दिन मंत्री महामंत्री ने अपने पूरे हाथ में स्वर्ण मुद्राएं भर लीऔर इस बार राजकोष का अधिकारी यह देख कर महामंत्री को राजा के सामने ले गया। राजा ने यह सुन कर कहा कि महामंत्री ने तीन बार राजकोष से धन की चोरी की है। उनको 3 महीने की सजा मिलेगी।

राजा का फैसला सुनाने के बाद महामंत्री ने कहा कि मैं चोर नहीं हूं। मैं बस इतना जानना चाहता था कि आपके द्वारा मुझे जो सम्मान मिलता है, उसका सच्चा अधिकारी कौन है। मुझे मेरे सवाल का उत्तर मिल गया है। मुझे पता चल गया कि मेरी योग्यता, अज्ञानता और अच्छा व्यवहार सम्मान का अधिकारी है। जैसे ही मैंने अच्छा व्यवहार करना छोड़ दिया मैं दंड का अधिकारी बन गया।

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