एक राजा के 100 पुत्र थे, अब उनमें से किसी एक को राजा बनाया जाना था, एक दिन शाम के समय राजा ने सभी पुत्रों को विशेष भोज के लिए आमंत्रित किया, जब सभी राजकुमार खाना खाने…….
एक राजा के 100 पुत्र थे। राजा और उसकी पत्नी दोनों ही सभी पुत्रों से बराबर प्रेम करते थे। एक दिन जब राजा बूढ़ा हो गया तो उसके मन में विचार आया किसी एक पुत्र को राजा बना देना चाहिए। लेकिन उसे यह नहीं समझ आ रहा था कि राजा किस पुत्र को बनाना चाहिए। राज-रानी दोनों यह चाहते थे जो पुत्र बुद्धिमान और साहसी हो वह राजा बने।
राजा ने बुद्धिमान और साहसी पुत्र को चुनने के लिए शाम के वक्त सभी पुत्रों के लिए विशेष भोज आयोजित किया। सभी पुत्र तय समय पर भोजन स्थल पर आ गए और अपनी-अपनी जगह पर खाने के लिए बैठ गए। सेवकों ने खाना परोसा। उसी वक्त राजा भी छिपकर पूरी व्यवस्था देख रहे थे। जैसे ही सभी पुत्र खाना खाने वाले थे कि राजा ने अपने सैनिकों से कह दिया कि जंगली कुत्ते छोड़ दिए जाए।
जैसे ही जंगली कुत्ते भोजन स्थल पर आ गए तो कुछ पुत्र कुत्तों का शिकार करने लगे और कुछ डर कर भाग गए। पूरा भोजन स्थल बर्बाद हो गया। अगले दिन राजा ने सभी पुत्रों को दरबार में बुलाया। जब सभी दरबार में आ गए तो दरबारी जानना चाहते थे कि 100 में से कौन-से पुत्र को राजा नियुक्त किया जाएगा। राजा ने पूछा कि कल आप सभी ने अच्छे से भोजन किया? भोजन कैसा था?
कुछ ने कहा कि हम खाना नहीं खा पाए क्योंकि हमने कुत्तों का शिकार किया और कुछ ने कहा कि हम अपने प्राण बचाकर वहां से भाग आए। राजा ने अपने सबसे छोटे पुत्र से पूछा कि क्या तुमने भोजन किया।
छोटे पुत्र ने कहा कि हा महाराज मैंने भोजन किया। खाना बहुत ही स्वादिष्ट था। राजा ने पुत्र से पूछा कि आखिर तुमने भोजन कैसे किया। क्या जंगली कुत्तों ने तुम्हें भोजन करने दिया।
छोटे राजकुमार ने बताया कि कि महाराज मेरे पास खाने की 99 थालियां अतिरिक्त थी। जैसे ही कोई जंगली कुत्ता मेरे पास आता तो मैं उन्हें एक थाली दे देता और खुद भी खाना खा लेता। कुछ कुत्तों ने मुझ पर आक्रमण करने की कोशिश की तो मैंने उन्हें तलवार से मार दिया।
यह जवाब सुनकर सभी दरबारी छोटे पुत्र की प्रशंसा करने लगे। छोटा पुत्र नया राजा घोषित किया गया क्योंकि छोटे पुत्र में साहस और बुद्धि कूट-कूट कर भरी हुई थी।
कहानी की सीख
इस कहानी से हमें सीखखने को मिलता है कि जीवन में सफलता पाने के लिए साहस होने के साथ-साथ बुद्धि भी होना जरूरी है। बिना बुद्धि के सफलता नहीं मिल सकती।