एक राजा-रानी अपनी तीर्थ यात्रा पूरी करके वापस अपने महल आ गए, रात को सोते समय रानी नींद में बोलने लगी कि हे भगवान आखिर उस बेचारे का क्या हाल हुआ होगा……
एक राजा अपनी रानी के साथ तीर्थ यात्रा पर निकल गया। रास्ते में उन्हें कई संत दिखे। उन्होंने भगवान महावीर के भी दर्शन किए। सभी संत अलग-अलग तरीके से तपस्या कर रहे थे। उस समय काफी ठंड थी और तापमान भी बहुत कम था। रानी ने देखा कि संत इतनी ठंड में बिना कपड़ों के तप कर रहे हैं। उसी रात राजा-रानी अपने महल वापस लौट आए।
ठंड की वजह से रानी बीमार हो गई। रानी को गहरी नींद में उस संत का ध्यान आया, जो बिना कपड़ों के ही तपस्या कर रहा था। फिर वह सोचने लगी कि मेरे पास तो सभी सुख सुविधाएं हैं। लेकिन मैं ठंड नहीं सह पा रही हूं। वह नींद में बोलने लगी कि हे भगवान ! इस ठंड में उस बेचारे का क्या हाल होगा।
राजा ने रानी की यह बात सुन ली। फिर राजा ने रानी पर शक किया कि जरूर उसके मन में कोई पर पुरुष है, जिसकी चिंता रानी नींद में भी कर रही है। इस बात से राजा बहुत गुस्से में आ गया और कमरे से बाहर आया। उसने अपने मंत्री को बुलाकर आदेश दिया कि जिस कमरे में रानी सो रही है, उस कमरे में आग लगा दो।
इसके बाद राजा भगवान महावीर के पास पहुंचा और उन्हें सारी बात बताई। भगवान महावीर ने राजा से कहा- हे राजन् रनी पतिव्रता है, वे पवित्र है, तुमने यह क्या कर दिया। यह सब सुनकर ही राजा अपनी गलती पर पछताने लगा और तुरंत महल लौट आया। उसने अपने मंत्री से पूछा- क्या तुमने कमरे में आग लगा दी।
मंत्री ने कहा- हां महाराज, आपकी आज्ञा का पालन तो करना ही था। यह सुनते ही राजा बहुत परेशान हो गया। फिर मंत्री ने कहा- महाराज महल और रानी दोनों सुरक्षित हैं। मैं जानता था कि आपने क्रोध में यह आदेश दिया। इसलिए मैंने आपका यह आदेश नहीं माना। फिर राजा ने संकल्प लिया कि आगे से वह कभी क्रोध में कोई भी निर्णय नहीं करेगा।
कथा की सीख
इस कथा से यही सीख मिलती है कि हम क्रोध में जो भी निर्णय लेते हैं, उनकी वजह से हमें बाद में पछताना पड़ता है। इसीलिए सोच-विचार कर निर्णय लेना चाहिए।