एक राजा रोजाना किसी एक व्यक्ति की इच्छा को पूरा करता था, रोज सुबह के समय दूर-दूर से लोग राजा के महल आते थे, एक दिन राजा के दरबार में एक संत आए और बोले मेरे इस बर्तन को स्वर्ण मुद्राओं…….
एक राजा हर रोज किसी एक व्यक्ति की इच्छा पूरी करता था. इसी वजह से राजा के महल में हर रोज सुबह बहुत दूर-दूर से लोग आते थे. सभी इंतजार करते थे कि शायद राजा उनके पास आएं और उनकी इच्छा पूरी हो जाए. एक दिन सुबह-सुबह एक संत राजा के द्वार पर आए और उन्होंने राजा से कहा कि मेरे इस बर्तन को स्वर्ण मुद्राओं से भर दो.
राजा संतों का बहुत सम्मान करते थे. उन्होंने कहा कि यह तो बहुत छोटा सा काम है, मैं अभी से भर देता हूं. राजा ने जैसे ही अपने पास रखी हुई मुद्राएं उस बर्तन में डाली, सारी मुद्राएं गायब हो गई राजा. यह देखकर बहुत हैरान हुए. राजा ने अपने कोषाध्यक्ष से कहकर और मुद्राएं मंगवाई और सारी मुद्राएं पात्र में डालते गए. लेकिन वह बर्तन नहीं भरा. राजा का पूरा खजाना खाली हो गया. राजा यह सोचने लगा कि यह कोई जादुई बर्तन है. इसी वजह से यह नहीं भर पा रहा है.
तब राजा ने संत से पूछा कि इस बर्तन का रहस्य क्या है. संत ने जवाब दिया कि महाराज, यह पात्र हमारे हृदय से बना है. जिस प्रकार हमारा मन धन, पद और ज्ञान से नहीं भरता, ठीक उसी तरह यह पात्र भी कभी नहीं भरेगा. हमारे पास चाहे जितना धन आ जाए, हम चाहे जितना भी ज्ञान अर्जित कर ले, लेकिन हमारे मन की इच्छा हमेशा अधूरी रहती है.
हमारा मन इन चीजों से भरने के लिए बना ही नहीं है. हमें भगवान को अपने मन में बसा लेना चाहिए. जब तक हमारा मन भगवान को प्राप्त नहीं कर लेता यह खाली रहता है. इसीलिए हम लोगों को इन बेकार की चीजों के पीछे नहीं भागना चाहिए. हमारी इच्छाएं कभी खत्म नहीं होती.
कथा की सीख
इस कहानी से हमें यह सीखने को मिलता है कि हमें भगवान ने जितना दिया है, उसी में संतुष्ट रहना चाहिए. हमें भगवान का ध्यान करना चाहिए, तभी हमारा मन शांत रहेगा और हमारा जीवन सार्थक होगा.