एक लकड़हारे ने उपहार के रूप में गुरु को थोड़ी सी घास दी, गुरु ने उसे अनमोल उपहार की तरह अपनी कुटिया में रख लिया, शिष्यों ने अपने गुरु से पूछा कि आप इस मामूली घास……
गुरुकुल में कुछ शिष्य और गुरु के साथ-साथ रहते थे। एक लकड़हारा आश्रम के पास से गुजर ही रहा था कि वह गुरु और शिष्य को देख कर रुक गया। लकड़हारे ने अपनी गठरी से घास के कुछ पुलिंदे निकाले और उनको गुरु के चरणों में रख दिए। लकड़हारे ने गुरु से कहा कि मैं लकड़हारा हूं। मैंने आपको शिष्य को पढ़ाते हुए देखा तो इच्छा हुई कि आप के दर्शन कर लूं। इसलिए मैं आपको घास भेंट स्वरूप देना चाहता हूं। गुरु ने वह घास प्रेम पूर्वक स्वीकार कर ली।
उन्हें अपने शिष्यों से कहा कि घास को कुटिया में जाकर रख दो। शिष्यों ने गुरु से पूछा कि आपने इस घास को महंगे उपहार की तरह क्यों रख लिया। आपने थे इस घास को महत्व क्यों दिया। यह तो हर जगह उगती रहती है। हम आपके लिए रोज ताजी घास ला सकते हैं। गुरु ने शिष्यों को बताया कि कोई भी चीज मामूली नहीं होती। लेकिन शिष्यों ने कहा कि यह तो मामूली है, यह महत्वपूर्ण कैसे हो सकती है।
गुरु ने अपने शिष्यों से कहा कि तुम सभी मुझे जंगल से सूखी पत्तियों की एक बोरी भरकर दो मुझे कुछ काम है। शिष्यों को यह काम आसान लगा है तो उन्होंने कहा कि जंगल में हजारों पत्तियां सूखकर पेड़ों से गिर जाती है। हम अभी जाते हैं और बोरे में भरकर सूखी की पत्तियां लाते हैं।
शिष्यों को बहुत खुशी हो रही थी कि गुरु ने उनको बहुत आसान काम सौंपा है। सभी शिष्यों जंगल में पहुंच गए। लेकिन जब वे जंगल में पहुंचे तो उन्होंने देखा कि कोई और पहले से ही सूखी पत्तियां लेकर चला गया था। उन्हें एक किसान दिखाई दिया तो उन्हें पता चला कि यह सूखी पत्तियां उसके घर में ईंधन का काम करती है। उसके घर में चूल्हा इसी से जलता है। किसान ने शिष्यों को बताया कि तुम को अगर सूखी पत्तियां चाहिए तो नगर में एक व्यापारी सूखी पत्तियों का कारोबार करता है, तो उससे पत्तियां ले सकते हो।
सभी शिष्य नगर में व्यापारी के पास चले गए। उस व्यापारी से शिष्यों ने पत्तियां मांगी तो उसने बताया कि मैंने सभी पत्तियों के दोने और पत्तल बनाकर बेच दिए गए हैं। मेरे पास अब कोई भी सूखी पत्ती नहीं बची है। व्यापारी ने बताया कि तुम उस बूढ़ी महिला के पास चले जाओ जो हर रोज जंगल में से सूखी पत्तियां बटोर कर लाती है। उसके पास तुम्हें सूखी पत्तियां मिल जाएंगे।
शिष्य बूढ़ी औरत के पास पहुंच गए और उसे पत्तियां मांगी तो उसने कहा कि मैंने सभी पत्तियों से औषधियां बना ली है। मेरे पास सूखी पत्तियां नहीं है। सभी शिष्य निराश होकर आश्रम गए। गुरु ने पूछा कि क्या तुमको सूखी पत्तियां मिली। शिष्यों ने लज्जा के साथ कहा, गुरुवर नहीं। शिष्यों ने अपने गुरु को बताया कि हमें पत्तियां क्यों नहीं मिली । गुरु ने कहा कि अब तुम को पता चल गया होगा कि संसार में किसी भी चीज का महत्व कम नहीं है। इसलिए किसी भी चीज को कम नहीं आंकना चाहिए।
कथा की सीख
इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि हम जीवन को किस नजरिए से देखते हैं, अच्छे या बुरे। हम सभी को अपने जीवन में हर छोटी या बड़ी चीज को बराबर महत्व देना चाहिए।