एक संत को स्वर्ण मुद्रा मिली, उन्होंने सोचा कि इसे क्यों ना किसी गरीब को दान दे दिया जाए, बाद में उस स्वर्ण मुद्रा को संत ने राजा को दे……
एक बार एक संत एक गांव से दूसरे गांव में घूम रहे थे। वह कभी भी ज्यादा दिनों तक एक जगह नहीं रुकते थे। वह अपने प्रवचनों से लोगों को जीवन सुखी और सफल बनाने के सूत्र बताते थे।
जब एक दिन वह रास्ते में जा रहे थे तो उन्हें स्वर्ण मुद्दा मिल गई। संत ने स्वर्ण मुद्रा को उठाया और मन में विचार किया इसको गरीब व्यक्ति को दे देना चाहिए। उन्होंने कई दिनों तक ऐसे गरीब व्यक्ति की तलाश की, जिसको वास्तव में स्वर्ण मुद्रा की जरूरत हो। लेकिन उन्हें कोई ऐसा व्यक्ति नहीं मिला। कुछ समय इस तरह से बीत गया।
एक दिन संत ने एक राजा को अपनी सेना के साथ पड़ोसी राज्य पर आक्रमण करने जाते हुए देखा। संत ने स्वर्ण मुद्रा राजा को निकाल कर दे दी। राजा ने बहुत ही आश्चर्य से संत से पूछा कि आप मुझे स्वर्ण मुद्रा क्यों दे रहे हैं। संत ने कहा मुझे यह स्वर्ण मुद्रा कुछ दिनों पहले रास्ते में मिली थी।
मैंने मन में विचार किया इसको किसी गरीब जरूरतमंद व्यक्ति को दे देना चाहिए। मुझे आज आप के रूप में बहुत ही गरीब इंसान मिला। राजा संत की यह बात सुनकर हैरान हो गया। राजा ने कहा कि गुरुवर आप यह क्या कह रहे हैं। मैं तो राज्य का राजा हूं। मेरे पास बहुत सारी धन संपत्ति है।
संत ने कहा कि इतना धन होने के बावजूद भी तुम दूसरे राज्य पर हमला करके उसका धन लूटने जा रहे हो। हम उसे गरीब नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे। राजा को संत की बात समझ आ गई और उसने संत को प्रणाम किया। उसने दूसरे राज्य पर हमला करने का विचार बदल दिया।
कहानी की सीख
इस कहानी से हमें सीखने को मिलता है कि जीवन में हमें जितना मिले उतने में ही संतुष्ट रहना चाहिए। दूसरों के धन पर बुरी नजर रखना अच्छी बात नहीं है। जो लोग दूसरों के धन पर नजर रखते हैं कभी सुखी नहीं रह पाते।