एक संत जब भी ध्यान करते तो एक बिल्ली का बच्चा उनकी गोद में आकर बैठ जाता, उन्होंने अपने शिष्यों से कहा……

एक बार एक संत अपने शिष्यों के साथ जंगल से जा रहे थे। उन्हें रास्ते में एक बिल्ली का बच्चा दिखाई दिया। महात्मा ने विचार किया यदि यह बिल्ली का बच्चा जंगल में रहती है तो जंगली जानवर इसे अपना शिकार बना लेंगे। संत उस बिल्ली के बच्चा को अपने साथ आश्रम में ले आए। अब वो आश्रम में ही रहने लगा। वह महात्मा से बहुत घुल-मिल गया।

जब भी संत ध्यान के लिए बैठते बिल्ली का बच्चा उनकी गोदी में आकर बैठ जाता था, जिससे संत का ध्यान भंग हो जाता था। महात्मा ने अपने शिष्यों को आदेश दिया कि जब भी मैं ध्यान के लिए बैठूं तो इस बिल्ली के बच्चों को पेड़ से बांध दिया करो। शिष्यों ने अपने गुरु जी का आदेश मान लिया।

अब हर रोज यही होता था। जब भी महात्मा ध्यान लगाने बैठते तो बिल्ली के बच्चे को पेड़ से बांध दिया जाता था। अचानक ही संत की एक दिन मृत्यु हो गई। संत के योग्य शिष्य को आश्रम का प्रमुख नियुक्त किया गया। जब आश्रम के नए प्रमुख ध्यान लगाने के लिए बैठते थे तब वे बिल्ली के बच्चे को पेड़ से बंधवा देते थे क्योंकि यह काफी दिनों से चल रहा था।

अचानक ही एक दिन बिल्ली का बच्चा मर गया। सभी शिष्यों ने एक जगह इकट्ठे होकर यह निर्णय लिया कि बिल्ली के बच्चे को पेड़ से बांधने के बाद ही बड़े महात्मा ध्यान पर बैठते थे। इसीलिए अब पास के गांव से एक नया बिल्ली का बच्चा लाया जाए। उसको पेड़ से बांधने के बाद ही गुरु जी ध्यान पर बैठेंगे।

कहानी की सीख

सदियों से कुछ ऐसी परंपराएं और मान्यता चली आ रही है जिनकी जानकारी और महत्व किसी को भी नहीं है। भले ही यह मान्यताएं और परंपरा बन गई हो। लेकिन आज के दौर में इनका कोई भी काम नहीं है।

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