कहते हैं कि महादेव के इस मंदिर में छिपा है दुनिया के अंत होने का रहस्य, शिवलिंग का बढ़ता आकार देता है महाप्रलय का संकेत, इतना और बढ़ा तो……..

आज हम आपको दो ऐसी शिव मंदिरों के बारे में बताने जा रहे हैं जहां विराजित शिवलिंग का आकार बढ़ता जा रहा है और ये बढ़ते शिवलिंग का आकार महाप्रलय का संकेत देता है।

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गुजरात के मृदेश्वर मंदिर में छिपा है यह रहस्य

गुजरात के गोधरा में स्थित मृदेश्वर महादेव मंदिर प्रलय का संकेत देता है। कहा जाता है कि शिवलिंग का बढ़ता आकार कलयुग के बढ़ते रौब की निशानी है। लोगों की मान्यता है कि जिस दिन ये शिवलिंग साढ़े आठ फुट से ऊंचा होकर मंदिर की छत को छू लेगा उस दिन कलयुग अपने अंतिम चरण पर पहुंच जाएगा। हालांकि, शिवलिंग का आकार चावल के दाने के बराबर बढ़ता है। मंदिर की छत तक इसे पहुंचने में अभी लाखों वर्ष का समय लगेगा। मृदेश्वर शिवलिंग की एक विशेषता ये भी है कि यहां खुद से ही जल की धारा निकलती रहती है। इस जल धारा को गर्मी और सूखे दोनों का ही कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। धारा लगातार बहती ही रहती है। हालांकि, ये सभी बातें मान्यताओं पर आधारित हैं। इस बारे में किसी तरह को कोई प्रमाण नहीं मिलता है।

पाताल भुवनेश्वर और कलयुग के अंत का रहस्य

उसके अलावा उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में स्थित पाताल भुवनेश्वर गुफा मंदिर है। जिसका जिक्र पुराणों में भी किया गया है। मान्यताओं के अनुसार, इस गुफा के गर्भ में दुनिया के खत्म होने का राज छिपा हुआ है। इस मंदिर में जाने का रास्ता बहुत ही पतला है। मान्यताओं के अनुसार, इस गुफा की खोज सूर्य वंश के राजा और त्रेता युग में अयोध्या पर शासन करने वाला राजा ऋतुपर्णा ने इस गुफा की खोज की थी। तब उन्हें यहां नागों के राजा अधिशेष मिले थे। अधिशेष ऋतुपर्णा को गुफा के अंदर ले गए, जहां उन्हें देवी देवताओं के साथ-साथ भगवान शिव के दर्शन करने का भी मौका मिला। ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव खुद इस गुफा में रहते हैं और देवी देवता उनकी पूजा करने के लिए वहां आते हैं। पौराणिक कथाओं के मुताबिक, कलयुग में मंदिर की खोज जगदगुरु आदि शंकराचार्य ने आठवीं शताब्दी में की थी, तब उन्हें यहां तांबे का शिवलिंग स्थापित किया था।

इस गुफा में ब्रह्मा विष्णु महेश तीनों की पींडियां हैं। जिन पर प्रकृति बारी बारी से जलाभिषेक करती है। यहां चार युगों, सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलियुग के प्रतीक रूप में चार पत्थर स्थापित हैं। कलियुग का प्रतीक पत्थर सबसे ऊंचा है। जबकि पहले तीन युगों के जो पत्थर है उनमें कोई बदलाव नहीं होता है। धार्मिक मान्यता है कि जिस दिन यह त्थर छत से लटक रही पींडि से टकरा जाएगा उस दिन कलयुग को अंत हो जाएगा और प्रलय आ जाएगी। हालांकि, अभी कलयुग को पांच हजार वर्ष ही हुए हैं और कलयुग का प्रथम चरण चल रहा है। इसलिए दुनिया जल्द समाप्त होने की भविष्यवाणी निराधार है।

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