काशी विश्वनाथ मंदिर: इस मंदिर को नष्ट करने का मुगल शासकों ने कई बार किया था प्रयास, औरंगजेब ने एक बार तो मंदिर के निहत्थे पुजारियों पर करवा दिया था हमला, तब मंदिर के मुख्य पुजारी ने….
ज्ञानवापी मस्जिद इन दिनों देश में सबसे ज्यादा चर्चा का विषय बना हुआ है। कहा जा रहा है कि ज्ञानवापी मस्जिद काशी विश्वनाथ मंदिर का ही एक हिस्सा है जिसे तोड़कर मुगलों ने वहां मस्जिद का निर्माण करवाया। कोर्ट के आदेश पर ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वे करवाया गया है जिसके बाद हिंदू पक्ष द्वारा यह दावा किया जा रहा है कि ज्ञानवापी से शिवलिंग मिला है। इसके बाद से यहां पर वजू करने पर रोक लगा दी गई है। हालांकि मुस्लिम पक्ष की ओर से इस दावे का खंडन किया जा रहा है और इसे फव्वारा बताया जा रहा है। दूसरी ओर अब हिंदू पक्षकारों द्वारा काशी विश्वनाथ के नंदी के सामने की दीवार को हटाकर वहां भी सर्वे कराने की मांग की जा रही है। ऐसे में यह मामला अदालत में अभी लंबा चल सकता है। फिलहाल चलिए हम आपको ले चलते हैं इतिहास के पन्नों में और बताते हैं कि कैसे काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण हुआ और क्या है यहां के प्राचीन शिवलिंग का रहस्य…
जब पुजारी ने की शिवलिंग की रक्षा
कहा जाता है कि मुगल शासकों ने कई बार मंदिर को नष्ट करने का प्रयास किया। औरंगजेब के शासन में एक बार मंदिर के निहत्थे पुजारियों पर हमला भी किया गया तब मंदिर के मुख्य पुजारी ने शिवलिंग को बचाने के लिए उसे लेकर कुंए में कूद गए। माना जाता है कि इस घटना में पुजारी की मृत्यु हो गई और शिवलिंग कुंए में ही रह गया। फिर औरंगजेब ने मंदिर के स्थान पर ज्ञानवापी मस्जिद बनवा दी।
अहिल्या बाई होल्कर ने फिर से बनवाया मंदिर
औरंगजेब के शासन के बाद मराठा शासक मल्हार राव होल्कर ने मस्जिद को तुड़वाकर फिर से विश्वेश्वर मंदिर का निर्माण कराना चाहा तो उन्हें अपनों का ही साथ नहीं मिला। उनके बाद उनकी बहू और इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर के स्वप्न में शिवजी ने दर्शन दिए और फिर उन्होंने मस्जिद के ठीक सामने सन 1777 ने वर्तमान काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण करवाया।
औरंगजेब ने दिया था मंदिर को तोड़ने का आदेश
चीनी यात्री (ह्वेनसांग) के अनुसार उसके समय में काशी में सौ मंदिर थे, किन्तु मुस्लिम आक्रमणकारियों ने सभी मंदिर ध्वस्त कर मस्जिदों का निर्माण किया। ईसा पूर्व 11वीं सदी में राजा हरीशचन्द्र ने जिस विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था उसका सम्राट विक्रमादित्य ने निर्माण करवाया था।
इस मंदिर को 1194 में मोहम्मद गोरी ने लूटने के बाद तुड़वा दिया था। इसे फिर से बनाया गया, लेकिन एक बार फिर इसे सन् 1447 में जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह द्वारा तोड़ दिया गया। पुन: सन् 1585 ई. में राजा टोडरमल की सहायता से पं. नारायण भट्ट द्वारा इस स्थान पर फिर से एक भव्य मंदिर का निर्माण करवाया गया।
इस भव्य मंदिर को सन् 1632 में शाहजहां ने आदेश पारित कर तोड़ने के लिए सेना भेज दी। सेना हिन्दुओं के प्रबल प्रतिरोध के कारण विश्वनाथ मंदिर के केंद्रीय मंदिर को तो तोड़ नहीं सकी, लेकिन काशी के 63 अन्य मंदिर तोड़ दिए गए।
18 अप्रैल 1669 को औरंगजेब ने एक फरमान जारी कर काशी विश्वनाथ मंदिर ध्वस्त करने का आदेश दिया। यह फरमान एशियाटिक लाइब्रेरी, कोलकाता में आज भी सुरक्षित है। उस समय के लेखक साकी मुस्तइद खां द्वारा लिखित ‘मासीदे आलमगिरी’ में इस विध्वंस का वर्णन है। औरंगजेब के आदेश पर यहां का मंदिर तोड़कर एक ज्ञानवापी मस्जिद बनाई गई। 2 सितंबर 1669 को औरंगजेब को मंदिर तोड़ने का कार्य पूरा होने की सूचना दी गई थी।
शिव के त्रिशूल पर बसी काशी
कहते हैं कि गंगा किनारे बसी काशी नगरी भगवान शिव के त्रिशूल की नोंक पर बसी है जहां बारह ज्योर्तिलिंगों में से एक काशी विश्वनाथ विराजमान हैं। पतित पावनी भागीरथी गंगा के तट पर धनुषाकारी बसी हुई यह काशी नगरी वास्तव में पाप-नाशिनी है। भगवान शंकर को यह स्थान अत्यंत प्रिय है, इसलिए उन्होंने इसे अपनी राजधानी एवं अपना नाम दिया और काशी के नाथ काशी विश्वनाथ हुए है।