किसान ने राजा को बताया कि मैं रोजाना चार पैसे कमा लेता हूं, उसमें से एक पैसा कुएं में डाल देता हूं, दूसरे से अपना कर्ज चुका देता हूं, तीसरे को उधार देता हूं और चौथा…..
किसी नगर में रहने वाला राजा अपना वेश बदलकर अपने नगर की प्रजा का हालचाल जानता था। जब एक दिन वो राजा वेश बदलकर खेत में घूम रहा था तो उसने पेड़ के नीचे फटे पुराने कपड़े पहने हुए एक किसान को मजे से भोजन करते हुए देखा।
राजा को गरीब किसान पर दया आ गई। राजा ने तुरंत अपनी पोटली से सोने के 4 सिक्के निकाले और किसान को बताया कि मुझे यह चार सोने के सिक्के तुम्हारे खेत से मिले हैं। इन सिक्कों पर तुम्हारा अधिकार है। लेकिन किसान ने मना कर दिया कि यह सोने के सिक्के मेरे नहीं है। इनको आप अपने पास ही रखिए और दान कर देना।
मुझे इन सिक्कों की कोई आवश्यकता नहीं है। मैं हर रोज मेहनत से चार पैसे कमा लेता हूं। उससे मेरा खर्च पानी चल जाता है। राजा ने उस किसान से पूछा कि तुम चार पैसों से खुश कैसे रह लेते हो।
किसान ने उत्तर देते हुए कहा कि प्रसन्नता इस बात पर निर्भर नहीं करती कि तुम कितने पैसे कमाते हो। प्रसन्नता धन के उपयोग पर निर्भर करती है। राजा ने तुम चार पैसों से क्या कर लेते हो तो किसान ने बताया कि मैं एक पैसे को कुएं में डाल देता हूं। दूसरा पैसा कर्ज चुकाने के काम आता है। तीसरा पैसा उधार दे देता हूं और चौथा पैसा मिट्टी में गाड़ देता हूं।
राजा को किसान की बात समझ नहीं आई और राजा ने किसान से इसका मतलब पूछा। किसान ने बताया कि मैं एक पैसा अपने कुएं में इसलिए डालता हूं जिससे कि मेरे परिवार का भरण पोषण होता है। दूसरे पैसे से मैं अपना कर्ज चुका देता हूं। यानी कि उससे मेरे वृद्ध मां बाप की सेवा होती है। मैं तीसरा पैसा उधार दे देता हूं। यानी कि उससे मेरे बच्चों की शिक्षा दीक्षा हो जाती है। चौथा पैसा में मिट्टी में इसलिए दबाता हूं कि इससे पैसे की बचत हो जाती है। मैं इस दबाए हुए पैसे को काम आने पर जरूरत में ले सकता हूं।
राजा को किसान की बात समझ आ गई और उसे पता चल गया कि धन को हिसाब से खर्च करने पर प्रसन्नता बनी रहती है।
कहानी की शिक्षा
इस कहानी से हमें सीखने को मिलता है कि धन और खुशी दोनों अलग-अलग है। यह जरूरी नहीं कि ज्यादा पैसे वाला व्यक्ति ज्यादा खुशी हो। लेकिन कम पैसे वाला व्यक्ति भी बहुत खुश रह सकता है। हर चीज पैसे के उपयोग पर निर्भर करती है।