किसी गांव में एक गरीब संत अपनी पत्नी के साथ रहते थे, अक्सर उन दोनों को रात में भूखा ही सो जाना पड़ता था, जब राजा को इस बारे में पता चला तो उसने तुरंत ही संत की मदद के लिए धन और अनाज……

किसी गांव में एक गरीब संत रहते थे, जो बहुत परेशान रहते थे। कभी-कभी तो उन्हें और उनकी पत्नी को भूखा भी सोना पड़ता था। लेकिन नगर में उनका बहुत ज्यादा सम्मान था। संत बहुत ही स्वाभिमानी थे और धन के लिए कभी किसी से मदद नहीं लेते थे।

संत और उनकी पत्नी को अक्सर रात में भूखा ही सो जाना पड़ता था, राजा को जब इस बारे में पता चला तो राजा ने तुरंत ही संत की मदद के लिए धन और अनाज भिजवा दिया, लेकिन संत ने उस दान को लेने से

जब इस बात का राजा को पता चला तो उन्होंने संत की मदद करने का सोचा। राजा ने अपने मंत्रियों से कहा कि संत के घर पर्याप्त धन और अनाज पहुंचा दिया जाए। राजा की आज्ञा मानकर मंत्री ने संत के यहां धन और अनाज पहुंचा दिया। संत की पत्नी ने सोचा इतने धन और अनाज से हमारे बुरे दिन दूर हो जाएंगे और अब सब कुछ ठीक हो जाएगा।

लेकिन जब कुछ देर बाद संत घर पहुंचे और उन्हें पता चला कि ये राजा ने दन दिया है तो संत राजा का दिया हुआ दान लेकर महल पहुंचे। संत ने राजा के मंत्रियों से कहा कि मैं राजा को जानता नहीं हूं और ना ही राजा मुझे व्यक्तिगत रूप से जानते हैं। राजा ने केवल सुनी सुनाई बातों के आधार पर मुझ पर यह कृपा की है।

इस दान को स्वीकार नहीं कर सकता। जो आनंद खुद के कमाए धन से प्राप्त होता है, वह दान में मिले पैसों से कभी नहीं मिल सकता। इसलिए मैं राजा को यह धन लौटा रहा हूं।

कथा की सीख

इस कथा से सीख मिलती है कि कितनी भी मुश्किल परिस्थिति हो, व्यक्ति को अपने स्वाभिमान की रक्षा करनी चाहिए। खुद के कमाए गए धन से जो सुख मिलता है, वह कभी दान से नहीं मिल सकता।

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