क्या मरने से पहले ही खत्म हो जाती है इंसान के बोलने की ताकत

मरने से पहले ज्यादातर लोगों की बोलने की ताकत खत्म हो जाती है. लोग बोलने की कोशिश भी करते हैं तो वह स्पष्ट रूप से शब्द नहीं बोल पाते. इसको लेकर विदेश में कई प्रयोग हुए. अमेरिकी पत्रिका अटलांटिक ने एक लेख प्रकाशित किया, जिसमें कई तरह के उदाहरण और अध्ययनों का हवाला दिया गया.

ज्य़ादातर यही कहा गया है कि आखिरी समय में चेतना खत्म हो जाती है, कुछ बोलने की ताकत नहीं रह जाती. अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज एचडब्ल्यू बुश की जब मृत्यु हुई थी तो मीडिया में यही बताया गया कि उनके आखिरी शब्द आई लव यू टू थे.

मरने वाले आखिरी समय में क्या बोलते हैं.

लिजा स्मार्ट नाम की एक भाषा विज्ञानी ने पिता की मौत के बाद “वर्ड्स ऑन थ्रेसहोल्ड” नाम की एक किताब प्रकाशित की. इस किताब में 181 मरणासन्न लोगों की करीब 2000 बातों का जिक्र था, जिसमें उनके पिता भी थे. इस किताब की अपनी सीमाएं हैं. इसमें यह बताया गया है कि क्या मरने वाले लोग वाकई में बोलते हैं और उनके आखिरी शब्द क्या होते हैं.

पेशे और मरने से पहले चेतना का क्या कोई संबंध है

मरने से पहले लोगों की मानसिक दशा पर शोध किया गया. तरह-तरह के लोगों पर शोध हुए और उनके अंतिम शब्दों पर गौर किया गया. तब यह पाया गया कि मिलिट्री से जुड़े लोगों ने सबसे ज्यादा निर्देश या चेतावनी दी. धार्मिक और राजसी लोगों ने संतुष्टि और असंतुष्टि भरे शब्दों का ज्यादा जिक्र किया. जबकि कलाकार और वैज्ञानिक आमतौर पर सबसे कम बोले.

ज्यादातर लोग नहीं बोल पाते

कीले कहती हैं जीवन के अंतिम समय में ज्यादातर लोग नहीं बोल पाते, क्योंकि उनका शरीर काम करना बंद कर रहा होता है. उनकी शारीरिक ताकत खो चुकी होती है और उनके फेंफड़े भी काम करना बंद कर चुके होते हैं. वह फुसफुसाते हैं. लेकिन बोल नहीं पाते हैं.

सबसे ज्यादा किसको बुलाते हैं

कुछ लोग शांति में मर जाते हैं. वहीं एक डॉक्टर ने बताया कि ज्यादातर लोग मरते समय पत्नी, पति या बच्चों का नाम लेते हैं.

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