गरुड़ के दोनों ही बच्चे बहुत आलसी थे, वह उड़ना सीख ही नही रहे थे, एक शाम बच्चों ने अपनी मां मादा गरुड़ से कहा कि आज हमने अपने पंख फड़फड़ाए नहीं होते तो……

एक बार एक गरुड़ ने अपने दोनों बच्चों को पीठ पर बैठाया और सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दिया। दोनों बच्चों वहां दिनभर दाना चुगते रहे। शाम के वक्त वह गरुड़ आया और अपने बच्चों को लेकर घर चला गया। रोज गरुड़ यही करता था। बच्चों ने सोचा कि जब हमारे पिताजी पीठ पर बैठा कर हमें ले जाते हैं तो हमें उड़ने की क्या जरूरत है।

गरुड़ को पता चल गया कि मेरे दोनों बच्चे आलसी हो गए हैं। यह मेहनत करने कि नहीं सोच रहे हैं। यह उडना सीखना नहीं चाहते हैं। एक बार गरुड़ ने दोनों बच्चों को अपनी पीठ पर बैठाया और ऊंची उड़ान भर ली। उसने ऊंचाई पर से अपने दोनों बच्चों को गिरा दिया।

दोनों बच्चों ने पंंख फड़फड़ाना शुरू कर दिया और उन दोनों बच्चों को समझ आ गया कि उड़ना सीखना बहुत ही जरूरी है। किसी तरह दोनों बच्चों ने अपने प्राण बचा लिए। वह शाम के वक्त घर पहुंचे और अपनी मां से कहा कि आज पिताजी की वजह से हमारी मौत हो गई होती।

बच्चों की मां ने कहा कि पिताजी तुम्हें मारना नहीं चाहते थे बल्कि तुम्हें उडना सिखाना चाहते थे। तुम दोनों आलसी हो गए थे और उडना नहीं सीख रहे थे। इस वजह से उन्होंने ऐसा किया। मां ने बच्चों को कहा लगातार अभ्यास करने से हम काफी ऊंचाई तक उड़ सकते हैं। हमारी पहचान ऊंची उड़ान से की जाती है।

कहानी की सीख

इस कहानी से हमें सीखने को मिलता है कि हर व्यक्ति को तब तक मेहनत करनी चाहिए जब तक वह अपने लक्ष्य को हासिल नहीं कर लेता। जो व्यक्ति आलस्य करते हैं वह जीवन में कभी भी सफल नहीं हो पाते हैं। इसीलिए आलस्य को छोड़कर लक्ष्य प्राप्ति की ओर अग्रसर होना चाहिए।

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