जब समुद्र मंथन से अमृत निकला तो देवता और दानवों के बीच अमृतपान के लिए युद्ध छिड़ गया, उसी समय विश्वकर्मा जी अमृत चुराकर ले जाने लगे तो…….

उत्तराखंड को देवों की भूमि कहा जाता है। इस भूमि पर कई धार्मिक स्थल हैं। इनमें चार धाम गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ प्रमुख देव स्थल हैं। इसके अलावा, हर की पौड़ी प्रमुख धार्मिक स्थल हैं। हर साल हजारों की संख्या में श्रद्धालु देवों की भूमि उत्तराखंड की धार्मिक यात्रा पर आते हैं। हर की पौड़ी का भावार्थ हरि की पौड़ी से है। हिंदी में हरि की पौड़ी का अर्थ भगवान श्रीहरि विष्णु के चरण से है। आइए, हरि की पौड़ी के बारे में सबकुछ जानते हैं।

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क्या है कथा

किदवंती है कि समुद्र मंथन के दौरान जब अमृत की प्राप्ति हुई, तो देवता और दानवों के बीच अमृतपान हेतु युद्ध छिड़ गई। उसी समय विश्वकर्मा जी अमृत चुराकर ले जा रहे थे। तभी अमृत की कुछ बूंदे पृथ्वी पर गिर गई। जहां-जहां अमृत की बूंदे गिरी, वे धर्म स्थल बन गए। कुछ बूंदें हरिद्वार में भी गिरी। यह स्थान हर की पौड़ी कहलाया। ऐसी मान्यता है कि हर की पौड़ी में गंगा स्नान करने से व्यक्ति के समस्त पाप कट जाते हैं और मरणोपरांत मोक्ष की प्राप्ति होती है। अतः हर की पौड़ी में प्रतिदिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु गंगा स्नान हेतु आते हैं।

हर की पौड़ी पवित्र स्थल का महत्व

हरिद्वार का मुख्य घाट हर की पौड़ी है। इस स्थल से गंगा धरती पर आती है। इसके बाद उत्तर प्रदेश, बिहार और बंगाल होकर बंगाल की खाड़ी में जा मिलती है। धार्मिक मान्यता है कि हर की पौड़ी में एक पत्थर में भगवान श्रीहरि विष्णु के पदचिन्ह हैं। इसके लिए इस घाट को हर की पौड़ी कहा जाता है। इस जगह पर गंगा नदी में आस्था की डुबकी लगाने से सभी पाप धूल जाते हैं। संध्याकाल में गंगाघाट पर आरती की जाती है। यह दृश्य बेहद मनमोहक होता है। जब दीपों की रौशनी से जल में भी दीपों की प्रति ज्वाला जलती दिखती है।

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