दुनिया की एक ऐसी जनजाति जो अपनों की मौत के बाद सड़ाती है उनकी लाश और फिर राख बना कर पी जाती है, जानिए!

शहर में रहने वाले लोग भले ही अपनी रीति-रिवाजों को भूल चुके हों पर आदिवासी जनजातियां आज भी अपनी मान्यताओं का पालन करती आ रही हैं। दुनिया में अब कुछ ही आदिवासी जनजाति बची हुई हैं। पर जितने भी हैं वो पूरी शिद्दत से अपनी मान्यताओं को बचान में लगे हुए है। आज हम आप को एक ऐसी विचित्र जनजाति के बारे में बताने जा रहे हैं ,जो की अपने ही प्रियजनों के मरने के बाद उनकी लाश को खा जाते हैं।

वेनेजुएला और ब्राजील के बॉर्डर पर एक जनजाति रहती है जो अमेजन की प्रमुख जनजातियों में से एक है। इस जनजाति का यानोमामी  नाम से जाना जाता है। इस जनजाति के बारे में साल 1759 में पता चला था। स्पेन के खोजी पडामो नदी के पास रहने वाले लोगों से मिलने पहुंचे थे तब जा कर इस जनजाति के बारे में पता चला था। आपको बता दें कि यानोमामी जनजाति में करीब 35,000 सदस्य हैं जो अमेजन रेनफॉरेस्ट में करीब 250 गांवों में रहते हैं।

इस जनजाति को लेकर कई और चीजों भी काफी हैरान करने वाली हैं। जैसे की इस जनजाति के अंतिम संस्कार का रिवाज आप को चौंकाने देने वाला है। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इस जनजाति के लोग अपने प्रियजनों के मरने के बाद उनकी लाशें खा जाती है। इस जनजाति का मानना है कि इंसान की मौत प्राकृति क्रिया नहीं है। बल्कि वो किसी बुरी शक्ति के कारण मर जाते हैं। ऐसे में जब कोई मरता है गांव के लोग करीब 40-45 दिनों के लिए लाश को रख देते हैं। उतने दिनों में लाश सड़ जाती है। उसके बाद उसे खा जाते हैं।

इसे जनजाति के लोग मरे हुए इंसान की लाश को सड़ा ने के बाद हड्डियां और अन्य चीजों को जला देते है। इसके बाद जो राख बचती है, उसे केले के सूप में मिला कर मरने वाले के परिवारवाले लोगों को दिया जाता है। साथ ही इस सूप को गांव के हर सदस्य को बांटा जाता है और लोग इसे तब तक पीते हैं जब तक की राख पूरी खत्म नहीं हो जाती हैं। इस जनजाति का मानना है कि इस तरह करने से मरने वाले की आत्मा को शांति मिलती है। वहां पर रह रहे लोगों की यह भी मान्यता है कि राख खाने से लोगों के अंदर शक्ति बढ़ जाती है।

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