दुनिया से जुड़े रोचक तथ्य: जानें किसने सबसे पहले नापी पूरी दुनिया और कहां है समुद्र का दूसरा छोर?
दुनिया के बारे में कई ऐसी बातें हैं, जो हमारे जेहन में बस गई है, जिनको लेकर हम सवाल भी नहीं पूछते. दुनिया से जुड़े तथ्यों के बारे में लिखने वाले वैज्ञानिक मैट ब्राउन अपनी किताब “एवरीथिंग यू नियू अबाउट प्लानेट अर्थ इज रॉन्ग” में कुछ ऐसी ही बातों का जिक्र किया, जिन को पढ़कर आप भी सवाल उठाने लग जाएंगे.
जमीन, समुद्र तट, ताकत और व्यवसाय को लेकर आपस में युद्ध करने वाले देशों के बीच पृथ्वी पर कई जगह नो मैंस लैंड होने की जानकारी आपको भी होगी. दो देशों की सीमाओं के बीच खाली इलाका होता है, जहां पर किसी भी देश का नियंत्रण नहीं होता है. अफ्रीका में एक जगह है, जहां कोई भी देश अपना अधिकार नहीं चाहता. बीर ताविल नाम का यह इलाका 2060 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है, जो मिस्त्र और सूडान की सीमाओं के बीच है.
यह इलाका 20 वीं सदी की शुरुआत में अस्तित्व में आया. जब मिस्त्र और सूडान ने अपनी सीमाओं का निर्माण इस तरह से किया कि यह इलाका दोनों में से किसी का भी ना रहे. यह इलाका सूखाग्रस्त है, इसी वजह से यहां पर कोई अपना दावा नहीं करना चाहता. 2014 में अमेरिका के वर्जीनिया के एक किसान ने यहां एक झंडा लगाकर खुद को उत्तरी सूडान के राज्य का गवर्नर घोषित कर दिया था. वह चाहते थे कि उनकी बेटी राजकुमारी बने.
बता दें कि फर्डिनेंड मैगलन पहले यूरोपीय थे, जिन्होंने प्रशांत महासागर को पार किया था. 1519 में फर्डिनेंड मैगलन ने समंदर के रास्ते स्पाइस दीप खोजने की यात्रा शुरू की थी. लेकिन 3 साल बाद वह उसी जगह वापस लौट आए. यह यात्रा 270 लोगों के साथ शुरू हुई थी. लेकिन अंत में केवल 18 लोग ही जीवित बचे. इस दौरान मैगलन की भी मृत्यु हो गई.
मैगलन 1521 में फिलिपिंस के पूर्वी तट पर पहुंचे, जहां के मूल निवासी उन्हें सीबू द्वीप ले कर गए. इसके बाद उन लोगों के बीच दोस्ती हो गई. उनकी दोस्ती इतनी गहरी हो गई कि उन्होंने अपने दोस्तों को पड़ोसी द्वीप से बचाने के लिए मदद की. उन्होंने हमले की तैयारी की. इस युद्ध में मैगलन को एक जहर में डूबा हुआ तीर लगा, जिससे वह मर गए. मैगलन ने इस रास्ते को प्रशांत महासागर कहा.
सालों बाद स्पेन के खोजकर्ता वास्को नूनेज डी बालबोआ पनामा से होते हुए प्रशांत महासागर के किनारे पहुंचे और अपनी तलवार को हवा में लेकर लहरा कर उन्होंने इसकी खोज का दावा किया. भूकंप की तीव्रता को रिक्टर स्केल पर मापा जाता है. लेकिन यह तक पूरी तरह से सटीक जानकारी नहीं देता. 1970 में इसके लिए एक नई प्रणाली इजाद की गई थी, जिसे सिस्मोलॉजिकल स्केल कहते हैं.