द्वितीय सरसंघसंचालक माधवराव सदाशिव गोलवलकर सामान्य कार्यकर्ताओं के साथ पंगत में बैठे थे, तभी उनकी नजर एक कार्यकर्ता पर पड़ी, वह एक कोने में सिर नीचे करके बैठा हुआ था, कोई उसे कुछ समझाकर गया था, गोलवलकर जी…….

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघसंचालक माधवराव सदाशिव गोलवलकर जी से जुड़ा किस्सा है। एक दिन कार्यकर्ताओं की पंगत लग चुकी थी। सभी बहुत उत्साहित थे, क्योंकि उनके प्रमुख द्वितीय सरसंघसंचालक माधवराव सदाशिव गोलवलकर भी आज सामान्य कार्यकर्ताओं के साथ पंगत में बैठे थे।

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कई लोग पंगत में खाना परोस रहे थे, उस समय गोलवलकर जी की नजर एक कार्यकर्ता पर पड़ी, वह एक कोने में सिर नीचे करके बैठा हुआ था। कोई उसे कुछ समझाकर गया था। गोलवलकर जी ने देखा कि बहुत से कार्यकर्ता खाना परोस रहे हैं और जो बैठे हुए हैं, उनके चेहरे पर प्रसन्नता है, लेकिन ये एक कार्यकर्ता दुखी क्यों है?

गोलवलकर जी किसी को दुखी नहीं देख सकते थे। गोलवलकर जी उसके पास पहुंचे और उससे पूछा, ‘तुम खाना क्यों नहीं परोस रहे हो?’

वह व्यक्ति नीची गर्दन करके खड़ा हो गया, लेकिन कुछ बोला नहीं। गोलवलकर जी ने फिर से दबाव डालकर पूछा, लेकिन तब भी वह कुछ नहीं बोला। एक अन्य कार्यकर्ता ने ये देखा तो वह समझ गया कि गुरु जी इससे पूछ कर ही मानेंगे। तब कार्यकर्ता ने गोलवलकर जी से विनम्रतापूर्वक कहा, ‘ये उस जाति का नहीं है कि ये खाना परोस सके।’

गुरु जी बोले, ‘खाना परोसने का जाति से क्या संबंध है?’ गोलवलकर जी समझ गए कि यहां जाति भेद चल रहा है। इसके बाद उन्होंने खुद जलेबी का थाल उठाया, उस कार्यकर्ता के हाथ में दिया और कहा, ‘अब तुम सबसे पहले मेरी पत्तल में रखोगे, इसके बाद सभी की पत्तल में जलेबियां रखोगे।’

सभी कार्यकर्ता ये दृश्य देख रहे थे। वह व्यक्ति तो रो ही रहा था, साथ ही अन्य कार्यकर्ताओं की भी आंखों में आंसू आ गए।

सीख – गोलवलकर जी ने हमें ये संदेश दिया है कि जाति, शरीर या रंग के आधार पर इंसान एक-दूसरे से भेद करेंगे तो इस देश का विकास नहीं हो पाएगा। इसलिए कभी भी इंसानों में भेद नहीं करना चाहिए, क्योंकि सभी इंसान भगवान ने बनाए हैं। अगर हम लोगों में भेद करते हैं तो हम भगवान की बनाई हुई कृति का अपमान करते हैं।

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