परमहंस जी के एक शिष्य ने एक दिन उनसे पूछा कि व्यक्ति के मन में सुख-सुविधाओं को पाने की इच्छाएं बढ़ती रहती हैं, कामवासना के कारण मनुष्य मन से व्याकुल………
स्वामी विवेकानंद के गुरु रामकृष्ण परमहंस के विचारों में सुखी और सफल जीवन के सूत्र छिपे हैं। अगर इन सूत्रों को अपना लिया जाए तो हमारी कई समस्याएं आसानी से सुलझ सकती है। काफी लोगों की ये समस्या होती है कि उनका भक्ति में नहीं लग पाता है। इस संबंध में रामकृष्ण परमहंस का एक प्रसंग प्रचलित है।
प्रसंग के अनुसार एक दिन परमहंस के एक शिष्य ने पूछा कि व्यक्ति के मन में सुख-सुविधाओं को पाने की इच्छाएं बढ़ती रहती हैं, कामवासना की वजह से मन व्याकुल रहता है। इन इच्छाओं को पूरा करने के लिए अधिकतर लोग कोशिश करते रहते हैं। जैसी व्याकुलता सुख-सुविधाएं पाने की और कामवासना के लिए रहती है, वैसी व्याकुलता भक्ति करने के लिए क्यों नहीं होती?
रामकृष्ण परमहंस ने शिष्य से कहा कि ज्ञान की कमी कमी वजह से व्यक्ति भगवान से दूर रहता है और सांसारिक इच्छाओं को पूरा करने में लगा रहता है। भ्रम में उलझे रहने और मोह-माया में फंसे होने की वजह से व्यक्ति भगवान की ओर ध्यान नहीं दे पाता है, ऐसे लोग भक्ति नहीं कर सकते।
शिष्य ने फिर पूछा कि ये भ्रम और कामवासना कैसे दूर कर सकते हैं? परमहंसजी ने जवाब दिया कि सांसारिक वस्तुएं भोग हैं और जब तक भोग का अंत नहीं होगा, तब तक व्यक्ति भगवान की भक्ति में मन नहीं लगा सकता।
परमहंस ने समझाया कि कोई बच्चा खिलौने से खेलने में व्यस्त रहता है और अपनी मां को याद नहीं करता है। जब उसका मन खिलौने से भर जाता है या उसका खेल खत्म हो जाता है, तब उसे मां की याद आती है। यही स्थिति हमारी भी है। जब तक हमारा मन सांसारिक वस्तुओं और कामवासना के खिलौने में उलझा रहेगा, तब तक हमें भी अपनी मां यानी परमात्मा का ध्यान नहीं आएगा। भगवान को पाने के लिए, भक्ति करने के लिए हमें भोग-विलास से दूरी बनानी पड़ती है।
लाइफ मैनेजमेंट
इस छोटे से प्रसंग का लाइफ मैनेजमेंट यह है कि जो लोग भक्ति करना चाहते हैं, उन्हें अपनी इच्छाओं को छोड़ देना चाहिए। जब तक मन में सांसारिक इच्छाएं रहेंगी, हम भक्ति नहीं कर सकते।