प्रसंग; अर्जुन ने एक पर्वत पर देवराज इंद्र से दिव्यास्त्र पाने के लिए तप किया, देवराज इंद्र प्रकट हुए और उन्होंने से कहा कि मुझसे दिव्यास्त्र लेने से पहले तुम्हें शिव जी को प्रसन्न करना होगा, इंद्र देव की बात मानकर अर्जुन ने……..
शिव जी की कथाओं में जीवन को सुखी और सफल बनाने के सूत्र बताए गए हैं। भगवान विष्णु की तरह ही शिव जी ने कई अवतार लिए हैं। भगवान ने एक अवतार अर्जुन का घमंड तोड़ने के लिए भी लिया था।
महाभारत का प्रसंग है। कोरव और पांडवों का युद्ध तय हो गया था। दोनों ही पक्ष युद्ध की तैयारियां कर रहे थे। उस समय अर्जुन ने एक पर्वत पर देवराज इंद्र से दिव्यास्त्र पाने के लिए तप किया। देवराज इंद्र प्रकट हुए और उन्होंने से कहा कि मुझसे दिव्यास्त्र लेने से पहले तुम्हें शिव जी को प्रसन्न करना होगा।
इंद्र देव की बात मानकर अर्जुन ने शिव जी को प्रसन्न करने के लिए तप शुरू कर दिया। जिस जगह अर्जुन तप कर रहे थे, वहां एक दिन एक जंगली सूअर आ गया। दरअसल वह सूअर एक मायावी दैत्य था जो अर्जुन को मारना चाहता था। अर्जुन ने जैसे ही जंगली सूअर को देखा, उन्होंने अपने धनुष पर बाण चढ़ा लिया।
अर्जुन उस सूअर को तीर मारने ही वाले थे, तभी वहां किरात वनवासी पहुंच गया। किरात वनवासी कोई और नहीं, बल्कि शिवजी ही थे, जो वेष बदलकर आए थे। इस बात से अर्जुन अनजान थे। वनवासी ने अर्जुन को बाण चलाने से रोक दिया और कहा कि ये मेरा शिकार है। ये बात सुनने के बाद भी अर्जुन ने तीर सूअर की ओर छोड़ दिया।
वनवासी ने भी उसी समय बाण छोड़ दिया। अर्जुन और वनवासी के बाण एक साथ उस सूअर को लगे। सूअर तो मर गया, लेकिन इन दोनों के बीच विवाद होने लगा। दोनों इस शिकार पर अपना-अपना हक बता रहे थे। ये विवाद युद्ध तक पहुंच गया।
अर्जुन ने उस वनवासी को पराजित करने की बहुत कोशिशें कीं, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। युद्ध के बीच में वनवासी का एक बाण अर्जुन को लग गया। उस समय अर्जुन को समझ आ गया कि ये कोई सामान्य योद्धा नहीं है। इसके बाद अर्जुन ने कुछ देर के लिए युद्ध रोका और मिट्टी का एक शिवलिंग पूजा की।
पूजा में जो माला अर्जुन ने शिवलिंग पर चढ़ाई थी, वह उस वनवासी के गले में दिखाई देने लगी। ये देखकर अर्जुन समझ गए कि ये स्वयं शिव जी ही हैं। अर्जुन ने शिव जी को पहचान लिया और उनकी पूजा की। शिव जी ने अर्जुन को संदेश दिया कि कभी भी अपनी शक्तियों का घमंड नहीं करना चाहिए और कभी भी किसी को छोटा नहीं समझना चाहिए।
जब अर्जुन को अपनी गलतियों का एहसास हुआ तो उन्होंने शिव जी से क्षमा याचना की और अहंकार छोड़ने का संकल्प लिया। इसके बाद शिव जी ने अर्जुन को पाशुपतास्त्र दिया था।