भारत का वो जहां हिंदुओं के साथ मुस्लिम समुदाय के लोग भी आते हैं दर्शन करने

यूं तो भारत में मां दुर्गा के कई प्राचीन मंदिर है। जिसकी कहानियां और उनके चमत्कार प्रसिद्ध हैं। मां के कई ऐसे मंदिर है जिनके बारे में कहा जाता है की वहां पूजा अर्चना करने से लोगों की मुराद पूरी होती है। आज हम ऐसे ही एक मंदिर के बारे में आपको बताने जा रहे हैं जिसका नाम है नेतुला देवी मंदिर। ये मंदिर बिहार के जमुई में स्थित है। जमुई जिले के सिकंदरा प्रखंड से महज 3 किलोमीटर की दूरी पर ये मंदिर स्थित हैं। ये मंदिर धार्मिक एकता का भी प्रतीक है। सिर्फ हिंदू धर्म के लोग ही नहीं बल्कि नेतुला देवी के दर्शन करने के लिए मंदिर में मुस्लिम समुदाय के लोग भी आते हैं।

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मंदिर का महत्व

नेत्र और पुत्र की देवी माने जाने वाली मां नेतुला के दरबार में अपार शक्तियों की झलक देखने को मिलती है। लगभग पांच हजार की संख्या में महिला पुरुष नवरात्रि के समय 9 दिनों तक रह कर सुबह शाम माता के दरबार में पूजा अर्चना करते हैं। इस मंदिर के बारे में मान्यता है की यदि किसी को संतान प्राप्ति नहीं हो रही है तो यहां मंदिर में मां नेतुला के दर्शन और पूजा करने से उसे जल्द ही संतान की प्राप्ति हो जाती है। साथ ही नेत्र रोग से पीड़ित लोगों को भी आराम मिलता है। इस मंदिर को लेकर एक खास मान्यता ये भी है की अगर कोई भक्त सच्चे मन से 30 दिनों तक इस मंदिर में धरना देता है तो उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है।

मंगलवार और शनिवार को खास पूजा

वैसे तो मां नेतुला मंदिर में रोजाना पूजा, आरती होती है लेकिन मंगलवार और शनिवार को यहां विशेष पूजा की जाती है। मां नेतुला मंदिर में हर दिन सुबह और शाम मां का फूलों से श्रृंगार किया जाता है। आरती में स्थानीय लोगों से साथ ही दूर दराज से भक्त शामिल होने पहुंचते हैं।

वैसे तो मां नेतुला देवी के मंदिर में रोजाना ही पूजा अर्चना की जाती है लेकिन, मंगलवार और शनिवार के दिन यहां विशेष पूजा की जाती है। मां नेतुला मंदिर में हर दिन सुबह और शाम मां का फूलों से श्रृंगार किया जाता है। इस दिन आरती में क्षेत्रीय लोग काफी संख्या में शामिल होने आते हैं।

मंदिर का इतिहास

मंदिर के पुजारी राजेंद्र प्रसाद पाण्डेय, रवींद्र पांडेय और मंदिर के कार्यकारी अध्यक्ष हरदेव सिंह ने बताया कि इस मंदिर का इतिहास 2600 साल पुराना रहा है। उल्लेखनीय है कि जैन धर्म के प्रसिद्ध ग्रंथ कल्पसूत्र के अनुसार 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर अपने घर का त्याग कर कुंडलपुर से जब ज्ञान प्राप्त करने के लिए निकले थे। तब प्रथम दिन मां नेतुला मंदिर के पीछे स्थित वटवृक्ष के नीचे उन्होंने रात्रि में विश्राम किया था और उसी स्थान पर अपना वस्त्र का त्याग कर दिए थे। कल्पसूत्र के अनुसार भक्तों की इस मंदिर के लिए आस्था इस प्रकार बढ़ी हुई है कि माता को नेत्र व पुत्र प्राप्ति की देवी के रूप में पूजा की जाती है। नवरात्रि में विशेष रूप से नौ दिनों बिहार, झारखंड, बंगाल राज्यों से आकर लगभग पांच हजार की लोग यहां पहुंचते हैं और 9 दिन तक मंदिर परिसर में उपवास एवं फलदार करके वहीं, तालाब में स्नान कर सुबह शाम माता के दरबार में पूजा अर्चना करते हैं। अष्टमी के दिन यहां भक्तों का भारी संख्या में तांता लगता है।

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