भारत में हैं एक ऐसा पेड़ जिसके इलाज में हर साल खर्च किए जाते हैं लाखों रुपये, 1880 में श्रीलंका से लाया गया था भारत, जानिए सबकुछ
आपने किसी व्यक्ति के इलाज में लाखों रुपये खर्च होते हुए देखा और सुना होगा। इसके अलावा पशु-पक्षियों के इलाज के बारे में भी जानते होंगे। लेकिन, अब हम आपको जो बताने जा रहे हैं उसे जानकर आप जरूर हैरान हो जाएंगे। बिहार के गया जिले में एक पेड़ के इलाज में हर साल लाखों रुपये खर्च किए जाते हैं। यही नहीं पेड़ की हेल्थ की जांच करने देहरादून से वैज्ञानिक आते हैं। हालांकि, इसके पीछे एक महत्वपूर्ण कारण है। दरअसल, इस पेड़ का बौद्ध धर्म में विशेष महत्व है जिसके कारण हर साल इस पर लाखों रुपये खर्च किए जाते हैं। साथ ही इस पेड़ की देखभाल के लिए एक साल में वैज्ञानिक लगभग तीन से चार बार स्वास्थ जांच करने गया पहुंचते हैं।
इस पेड़ का बौद्ध धर्म में विशेष महत्व है। ऐसा माना जाता है कि इसी वृक्ष के नीचे ध्यान करते समय गौतम बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। तब से इसे बोधि वृक्ष कहा जाने लगा जो गया के महाबोधि मंदिर में स्थित है। बिहार के गया का महाबोधि मंदिर बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए सबसे पवित्र तीर्थ स्थल है। यहां आए लोग इस पेड़ से गिरे पत्तियों को अपने साथ ले जाते हैं और इसकी पूजा करते हैं।
बीते कुछ दिनों से बोधि वृक्ष का हेल्थ चेकअप चल रहा है। इस बार देहरादून के फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट से दो साइंटिस्ट संतन बर्तवाल और शैलेश पांडे जांच के लिए आए हैं। वैज्ञानिकों ने बताया कि बोधी वृक्ष पूरी तरह से स्वस्थ है और फिलहाल इसे किसी ट्रीटमेंट की जरूरत नहीं है। साथ ही उन्होंने बताया कि पेड़ की पत्तियों का साइज भी बढ़ा है। वैज्ञानिकों ने पेड़ के तने की भी जांच की जिसमें, किसी भी तरह की बीमारी नहीं पाई गई। वैज्ञानिकों के अनुसार, फिलहाल पेड़ बिल्कुल स्वस्थ है।
देहरादून के फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट की मदद से बोधि वृक्ष की देखभाल की जाती है। इंस्टीट्यूट से वैज्ञानिक हर साल में तीन से चार बार गया पहुंचकर पेड़ के स्वास्थ की जांच करते हैं। जांच के मुताबिक, पेड़ के स्वास्थ्य को देखते हुए दवाओं का छिड़काव और टहनियों का कटाव किया जाता है। जरूरत होने पर केमिकल लेप भी लगाया जाता है। यह पेड़ लगभग 1880 के समय ही लगाया गया था जिसके कारण अब यह बहुत विशाल हो गया है। इस विशाल पेड़ की टहनियों को लगभग 12 लोहे के पिलरों से सहारा दिया गया है।
मौजूदा समय में महाबोधि मंदिर में लगा यह चौथा बोधि वृक्ष है। 1880 में लार्ड कनिंघम ने इसे श्रीलंका के अनुराधापुरम से लाकर लगाया था। इससे पहले तीन बार बोधि वृक्ष को नष्ट किया जा चुका है। सबसे पहले बोधि वृक्ष को सम्राट अशोक की पत्नी तिस्यरक्षिता ने कटवा दिया था। रानी ने ऐसा सम्राट अशोक के बढ़ते रूझान (कलिंग युद्ध के बाद) से नाराज होकर किया था। बंगाल के शासक शशांक ने लगभग 602-620 ईसवी में बौद्ध धर्म के अस्तित्व को मिटाने की मंशा से दूसरे बोधि वृक्ष को कटवा दिया था। वहीं बोधि वृक्ष की जड़ से निकला तीसरा वृक्ष प्राकृतिक आपदा के चपेट में आने के कारण नष्ट हो गया। उस दौरान लार्ड कनिंघम के नेतृत्व में खुदाई का काम चल रहा था। इसके बाद उन्होंने साल 1880 में श्रीलंका के अनुराधापुरम से बोधी वृक्ष की शाखा मंगवाकर लगवाई थी।