महाभारत के भीषण युद्ध को श्री कृष्ण अकेले ही एक दिन में जीतने में सक्षम थे, फिर भी उन्होंने युद्ध पांडवों से ही करवाया, उन्होंने सिर्फ मार्गदर्शन ही किया, श्री कृष्ण चाहते तो पांडवों की ओर से कोई सैनिक नहीं मारा जाता और……
वर्तमान समय में जहां हर कोई एक-दूसरे से आगे बढऩे की जुगत में लगा रहता है। वहीं कुछ लोग शार्ट कट से आगे बढऩे में भी नहीं कतराते। उन्हें लगता है कि उन्होंने स्मार्ट वर्क कर खुद को श्रेष्ठ साबित कर दिया है। उनकी सफलता स्थायी नहीं होती। स्थायी सफलता चाहिए तो शार्टकट न अपनाएं।
सफलता कैसे हो सकती है स्थायी, सीखें कृष्ण से….
भगवान कृष्ण जिन्हें अधिकतर लोग माया-मोह से रहित मानते हैं। भयंकर युद्धों के बाद भी कभी अशांत नहीं हुए। उन्होंने कभी अपने हिस्से का संघर्ष किसी दूसरों से नहीं करवाया। कभी किसी को सफलता के लिए अनुचित मार्ग नहीं दिखलाया।
महाभारत के भीषण युद्ध को अकेले कृष्ण पांडवों के लिए एक दिन में जीतने में सक्षम होने पर भी युद्ध पांडवों से ही करवाया, उन्होंने सिर्फ मार्गदर्शन ही किया। वे चाहते तो पांडवों की ओर से कोई सैनिक नहीं मारा जाता और युद्ध जीता जा सकता था।
इसका कारण यह था कि अगर कृष्ण युद्ध जीत कर युधिष्ठिर को राजा बना देते तो पांडव कभी उस सफलता का मूल्य नहीं समझ पाते। सफलता स्थायी और संतुष्टिप्रद तभी होती जब वे खुद संघर्ष करके इसे हासिल करते। कभी-कभी बहुत कामयाबी मिलने के बाद भी हमारा मन संतुष्ट नहीं होता।
सफलता हमें खुशी नहीं देती। ऐसा क्यों होता है कि हम जितने सफल होते हैं, उतना ही मन अशांत हो जाता है। इन सब के पीछे कुछ कारण हैं जो हमारी सफलता के भाव को प्रभावित करते हैं। सफलता के साथ शांति और संतुष्टि ये दो भाव होना जरूरी है। अगर हम अशांत और असंतुष्ट हैं तो इसका सीधा अर्थ यह है कि हमने सफलता के लिए कोई शार्टकट अपनाया है। शार्टकट से मिली सफलता अस्थायी होती है। और यही भाव हमारे मन को अशांत करता है।
स्थायी सफलता का रास्ता कभी छोटा नहीं होता, आसान नहीं होता लेकिन इस रास्ते से चलकर जब लक्ष्य तक पहुंचा जाता है तो वह स्थायी आनंद देता है। लोग अक्सर अपनी दौड़ में दूसरों को भूल जाते हैं, कौन आपके पैरों से ठोकर खाकर गिरा, किसने आपकी सहायता की, ऊंचाई पर जाकर सब विस्मृत हो जाता है।