मां विंध्यवासिनी के बारे में मान्यता है कि मिर्जापुर में विराजमान होने से पूर्व देवी मां ने खत्री पहाड़ को चुना था, लेकिन इस पहाड़ ने देवी मां का भार सहन……
मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों में से ही एक रूप है देवी विंध्यवासिनी। मां का यह स्वरूप भी प्रेममयी है। लेकिन एक बार कुछ ऐसा हुआ कि देवी विंध्यवासिनी ने पर्वत को कोढ़ी होने का शाप दे दिया। आइए जानते हैं कहां है ये पर्वत और देवी विंध्यवासिनी और इस पर्वत के कोढ़ी होने के पीछे की क्या है पूरी कहानी…
हम जिस मंदिर का जिक्र कर रहे हैं वह बुंदेलखंड के जनपद बांदा में शेरपुर सेवड़ा गांव में स्थित है। इसी पहाड़ में प्रसिद्ध विंध्यवासिनी मंदिर है जहां हर साल नवरात्रि में लाखों भक्तों का तांता लगता है हालांकि इस बार कोरोना के चलते भक्तों को सशर्त पूजा-पाठ की छूट दी गई है।
मां विंध्यवासिनी के बारे में मान्यता है कि मिर्जापुर में विराजमान होने से पूर्व देवी मां ने खत्री पहाड़ को चुना था। लेकिन इस पहाड़ ने देवी मां का भार सहन करने में असमर्थता जाहिर की थी। जिससे नाराज होकर मां पहाड़ को ‘कोढ़ी’ होने का शाप देकर मिर्जापुर चली गई। अपने उद्धार के लिए पहाड़ के प्रार्थना करने पर देवी मां ने नवरात्र की नवमी तिथि को पहाड़ पर आने का वचन दिया था। तभी से यहां अष्टमी की मध्यरात्रि से मेले का आयोजन होता आ रहा है।
बता दें कि केन नदी किनारे बसे शेरपुर के खत्री पहाड़ में विराजमान मां विंध्यवासिनी देश के प्रमुख 108 शक्ति पीठों में से एक है। जिस पर्वत पर मां का स्थान है उसका पत्थर सफेद रंग का है। कहते हैं कि देवी कन्या के शाप से ही इस पर्वत का पत्थर सफेद रंग का हो गया और तभी से पर्वत का नाम खत्री पहाड़ पड़ गया।
मंदिर निर्माण को लेकर कथा मिलती है कि तकरीबन चार दशक पहले देवी मां ने गिरवां के ब्राह्मण परिवार बद्री प्रसाद दुबे की नातिन शांता को मां विंध्यवासिनी ने स्वप्न में दर्शन दिए और इच्छा प्रकट की कि पर्वत के नीचे भी उनके मंदिर की स्थापना कराई जाए। मां वहां श्रद्धालुओं को दर्शन देंगी तभी गांव और स्थानीय निवासियों के प्रयास से विशाल मंदिर का निर्माण कराया गया। देवी विंध्यवासिनी की प्राण प्रतिष्ठा कराई गयी। तभी से पर्वत के नीचे विशाल मेले का आयोजन होने लगा।
ऐसी मान्यता है कि खत्री पहाड़ पर देवी विंध्यवासिनी चैत्र और शारदीय नवरात्र की नवमी तिथि को दर्शन देने आती हैं। कहते हैं कि अष्टमी की मध्यरात्रि के बाद देवी की मूर्ति की चमक अचानक से बढ़ जाती है। इसे लेकर ही मान्यता है कि देवी मां दर्शन देने आती हैं। बता दें कि देश के कोने-कोने से श्रद्धालु देवी विंध्यवासिनी के दर्शन करने आते हैं।