शिशुपाल की मां रिश्ते में श्रीकृष्ण की बुआ थीं, उन्होंने अपनी बुआं को वरदान दिया था कि वे शिशुपाल की 100 गलतियां क्षमा करेंगे, इस वरदान की वजह से……
महाभारत के समय की घटना है। पांडवों के बड़े भाई युधिष्ठिर राजसूय यज्ञ कर रहे थे। यज्ञ में श्रीकृष्ण को, कौरवों को बुलाया गया था। शिशुपाल वहां पहुंचा था। शिशुपाल श्रीकृष्ण को पसंद नहीं करता था और मौका मिलते ही उन्हें अपमानित करने लगता था। शिशुपाल की मां रिश्ते में श्रीकृष्ण की बुआ थीं। उन्होंने अपनी बुआं को वरदान दिया था कि वे शिशुपाल की 100 गलतियां क्षमा करेंगे। इस वरदान की वजह से श्रीकृष्ण शिशुपाल की अपमानजनक बातों का जवाब नहीं देते थे।
राजसूय यज्ञ में श्रीकृष्ण का सम्मान देखकर शिशुपाल गुस्सा हो गया। वह भरी सभा में श्रीकृष्ण का अपमान करने लगा। पांडवों ने शिशुपाल को रोकने की बहुत कोशिश की, लेकिन वह चुप ही नहीं हो रहा था।
श्रीकृष्ण मौन थे और उसकी गलतियां गिन रहे थे। जैसे ही शिशुपाल की सौ गलतियां पूरी हो गईं, श्रीकृष्ण ने उसे अंतिम अवसर दिया और कहा कि अब एक भी गलती मत करना, तुम्हारी सौ गलतियां हो चुकी हैं।
शिशुपाल अहंकारी था। श्रीकृष्ण के सचेत करने के बाद भी रुका नहीं और फिर एक और अपमानजनक बात कह दी। श्रीकृष्ण ने तुरंत ही अपने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का सिर धड़ से अलग कर दिया और सुदर्शन चक्र वापस श्रीकृष्ण की उंगली पर आ गया। उस समय चक्र की वजह से भगवान की उंगली पर चोट लग गई, खून बहने लगा।
द्रौपदी ने श्रीकृष्ण की उंगली से बहते खून को देखा तो तुरंत ही अपनी चुनरी से एक टुकड़ा फाड़ा और श्रीकृष्ण की उंगली पर लपेट दिया। इसके बाद श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को वरदान दिया था कि वे समय आने पर इस पट्टी के एक-एक धागे का ऋण जरूर उतारेंगे।
शिशुपाल वध के कुछ समय बाद युधिष्ठिर और कौरवों के बीच जुआं खेला गया। जिसमें युधिष्ठिर द्रौपदी को हार गए। दुर्योधन के आदेश पर दु:शासन ने भरी सभा में द्रौपदी को ले आया और उसके वस्त्रों को खींचने लगा। उस समय द्रौपदी ने श्रीकृष्ण का ध्यान किया। श्रीकृष्ण ने द्रौपदी की लाज बचाई थी।
कथा का संदेश
इस कथा का संदेश यह है कि अगर कोई व्यक्ति हमारी मदद करता है तो हमें उसके उपकार को भूलना नहीं चाहिए। अगर मदद करने वाले व्यक्ति को कभी भी हमारी जरूरत हो तो हमें उसकी मदद करने में पीछे नहीं हटना चाहिए।