सीख; एक दिन दरबार में शकुंतला ने निवेदन करते हुए राजा दुष्यंत से कहा ‘मेरे साथ जो बालक है, ये आपका ही पुत्र है, जब आप वन में आए थे तो आपने मुझसे विवाह किया था, आप वहां से अपने नगर में आ गए और……..
राजा दुष्यंत और शकुंतला से जुड़ा किस्सा है। एक दिन राजा दुष्यंत के दरबार में शकुंतला निवेदन कर रही थीं, ‘मेरे साथ जो बालक है, ये आपका पुत्र है। जब आप वन में आए थे तो आपने मुझसे विवाह किया था। आप वहां से अपने नगर में आ गए और अब आप मुझे भूल रहे हैं।’
दरबार में बैठे सभी लोग ये बातें सुन रहे थे। राजा दुष्यंत को गुस्सा आ गया और उसने कहा, ‘तुम झूठ बोल रही हो, तुम्हारी मां मेनका और पिता विश्वामित्र थे। तुम्हारी मां मेनका क्रूर हृदय वाली थी और तुम्हारे पिता को भी ब्राह्मण बनने के लिए एक ललक थी। वह मेनका को देखते ही काम के अधीन हो गए। तुम उनकी संतान हो, तुम पर मैं कैसे भरोसा कर सकता हूं?’
दुष्यंत ने शकुंतला के साथ ही उसके माता-पिता का भी अपमान किया। शकुंतला ने कहा, ‘आप दूसरों में सरसों के बराबर छोटे से दोष को भी देख रहे हैं, लेकिन खुद के बड़े दोष आपको दिखाई नहीं दे रहे हैं। मेरी मां मेनका और पिता विश्वामित्र पर इस तरह टिप्पणी करने का अधिकार आपको नहीं है। मेरे माता-पिता के कारण मेरे पास इतना प्रभाव है कि मैं आकाश में चल सकती हूं। आप तो धरती पर ही चल सकते हैं। आप सत्य का पालन करें, सत्य परमात्मा का ही एक स्वरूप है।’
इतना कहने के बाद भी दुष्यंत शकुंतला की बात मानने को तैयार नहीं थे। शकुंतला ने कहा, ‘ठीक है आप नहीं मानते हैं तो मैं चली जाऊंगी, क्योंकि मेरे पास कोई साक्ष्य नहीं है।’
उसी समय आकाशवाणी हुई और दुष्यंत को समझाया कि ये तुम्हारा ही पुत्र है। तब दुष्यंत ने शकुंतला से कहा, ‘मैं स्वीकार करता हूं ये मेरा ही पुत्र है, क्योंकि आकाशवाणी हुई है। मेरे दरबार में ब्राह्मण, पुरोहित, आचार्य और प्रजा बैठी हुई है। इन सभी के सामने आकाशवाणी हुई है तो मैं तुम्हें स्वीकार करता हूं।’
राजा दुष्यंत से किसी ने पूछा था कि आपने शकुंतला को पहले स्वीकार क्यों नहीं किया था?’
दुष्यंत ने उस व्यक्ति से कहा था कि अगर मैं सिर्फ शकुंतला के कहने पर उसे स्वीकार करता तो सभी लोग मुझे और शकुंतला को संदेह की नजर से देखते। इस बालक की पवित्रता पर भी लोग प्रश्न उठाते, लेकिन आकाशवाणी ने सब ठीक कर दिया है। मैं यही देख रहा था कि कोई शकुंतला की बात का कोई सटीक प्रमाण मिल जाए।’
सीख
इस किस्से से हमें दो संदेश मिल रहे हैं। पहला, कभी भी किसी के माता-पिता का अपमान न करें, उन पर गलत टिप्पणी न करें। दूसरा, अगर कोई निर्णय सावर्जनिक रूप से लेना हो तो दुष्यंत की तरह किसी ठोस प्रमाण की प्रतीक्षा करनी चाहिए। उस समय आकाशवाणी ही बहुत बड़ा प्रमाण होती थी, लेकिन आज संविधान, नियम का आधार लेकर ही सार्वजनिक निर्णय लेने चाहिए।