सीख; एक दिन मछिन्द्रनाथ जी ने अपने शिष्य गोरखनाथ से कहा, ‘अगर आत्मा को जानना है तो तुम्हें परम शक्ति से मिलना होगा, एक ऐसी जगह पर जाकर तपस्या करो जो हिम प्रांत हो, जहां चारों ओर बर्फ हो, किसी मनुष्य का रहना वहां मुश्किल………

एक दिन गुरु मछिन्द्रनाथ ने अपने शिष्य गोरखनाथ से कहा, ‘अगर तुम आत्मा को जानना चाहते हो, परम शक्ति से मिलना चाहते हो तो एक ऐसी जगह पर जाकर तपस्या करो जो हिम प्रांत है, जहां चारों ओर बर्फ हो। किसी मनुष्य का रहना वहां मुश्किल हो। ऐसी जगह जाओ।’

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गोरखनाथ गुरु द्वारा बताई गई जगह पहुंच गए और तपस्या शुरू कर दी। प्राणायाम की मदद से उन्हें धीरे-धीरे मालूम होने लगा कि शरीर अलग है और आत्मा अलग है। उन्होंने देवी मां की उपासना की और कहा, ‘मां अपनी शक्तियां मेरे शरीर में समाहित कर दें।’

कुछ समय बाद गोरखनाथ की इच्छा पूरी भी हो गई। एक दिन गोरखनाथ के सामने एक पागल जैसा बिखरी जटाओं वाला व्यक्ति आकर चिल्लाने लगा कि तू दंभी है, तेरा गुरु दंभी है। उस व्यक्ति ने गोरखनाथ पर तलवार से प्रहार किया, लेकिन गोरखनाथ सिद्ध हो चुके थे तो तलवार का असर उन पर नहीं हुआ। उस व्यक्ति ने गुरु को दंभी कहा था तो गोरखनाथ ने भी तलवार से प्रहार कर दिया। जैसे ही उस व्यक्ति को तलवार लगी तो उसे तो कुछ नहीं हुआ, लेकिन गोरखनाथ गिर गए।

गोरखनाथ ने उस व्यक्ति से पूछा, ‘आप कौन हैं? मेरे गुरु को दंभी क्यों कह रहे हैं?’

ये बात सुनकर वह व्यक्ति अपने असली स्वरूप में आ गया, वे थे गुरु मछिंद्रनाथ। गुरु मछिंद्रनाथ ने कहा, ‘तीतीक्षा करके तूने आत्मा की प्राप्ति तो कर ली है, तूझे बोध भी हो गया है, लेकिन दंभ यानी घमंड भी आ गया है। तू ये सोच रहा है कि ये सब तूने किया है। इसलिए मुझे यहां प्रकट होना पड़ा।’

तीतीक्षा का अर्थ होता है प्रसन्न होकर विपरीत हालातों को जीत लेना। मछिंद्रनाथ कहते हैं, ‘गोरखनाथ, मुझे इसलिए आना पड़ा, क्योंकि मुझे लग रहा था कि तूझे देह और आत्मा के अंतर के बोध होने से अहंकार हो गया है। अहंकार की वजह से सभी सिद्धियां और तपस्या नष्ट हो जाती है।’

सीख

इस किस्से में दो संदेश हैं। पहला, गुरु हमें सही रास्ता दिखाते हैं और जब हम रास्ता भटक जाते हैं तो गुरु ही हमें बचाते हैं। दूसरा संदेश ये है कि हमें कभी भी घमंड नहीं करना चाहिए। घमंड की वजह से सारी तपस्याएं नष्ट हो जाती हैं।

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