सीख; एक दिन रामानुजाचार्य जी अपने शिष्यों के साथ कहीं जा रहे थे, रास्ते में एक युवा महिला आ रही थी, शिष्यों ने देखा कि गुरु जी इधर से जा रहे हैं और सामने से महिला आ रही है, रास्ता संकरा था, शिष्यों ने……
रामानुजाचार्य जी अक्सर ये बात समझाते थे कि परमात्मा, आत्मा और प्रकृति, ये तीनों एक ही हैं। रामानुजाचार्य जी ये बात इतने अच्छे ढंग से समझाते थे कि उनके अनुयायियों के साथ ही अन्य लोग भी उनसे प्रभावित हो जाते थे।
रामानुजाचार्य जी की परंपरा बहुत ही दिव्य थी। रामानंद, कबीर दास, रैदास, सूरदास ये सभी इनकी परंपरा से ही थे। रामानुजाचार्य जी कहते थे कि परमात्मा के इन तीनों रूपों को एक साथ पाना चाहते हो तो हमें ध्यान करना चाहिए। जातिगत भेदभाव खत्म कर देना चाहिए।
जो सिद्धांत रामानुजाचार्य जी बोलते थे, उसका पालन भी करते थे। एक दिन वे अपने शिष्यों के साथ कहीं जा रहे थे। रास्ते में एक युवा महिला आ रही थी। शिष्यों ने देखा कि गुरु जी इधर से जा रहे हैं और सामने से महिला आ रही है, रास्ता संकरा था। शिष्यों ने उस महिला से कहा, ‘देवी जी या तो आप इधर हटिए या उधर हटिए। गुरु जी आ रहे हैं।’
महिला बोली, ‘मैं किधर हटूं? और कौन से गुरु जी। एक महिला की देह और पुरुष की देह में आपको अंतर दिखाई दे रहा है। परमात्मा तो सभी में समान है। सारे स्थान और सारे व्यक्ति एक समान हैं।’
रामानुजाचार्य जी ने बात सुनी तो उन्होंने शिष्यों को रोका और उस महिला से बोले, ‘बहन आपके विचार सुनकर ऐसा लगा कि जीवन हम जी रहे हैं, परमात्मा, आत्मा और प्रकृति की बातें कर रहे हैं, लेकिन आज ऐसा लगा कि आप साक्षात मूर्त रूप में संदेश बनकर आई हैं।’
सीख
रामानुजाचार्य का ये आचरण हमें सीख दे रहा है कि हम जिस सिद्धांत को मानते हैं, उसका पालन पूरी ईमानदारी के साथ करना चाहिए। विनम्र रहें और अच्छी-बुरी हर स्थिति को स्वीकार करें। मैं साधु हूं, मैं विद्वान हूं, ये अहंकार हमारे लिए दोष बन जाता है।