सीख; एक दिन रूसी विद्वान और दार्शनिक टॉलस्टॉय ने कहा, ‘मैंने बड़े भाई को टीबी से मरते देखा था और मैं उस दृश्य को भूला नहीं सका हूं, समय-समय मेरे पारिवारिक जीवन में ऐसी स्थितियां……..
एक दिन रूसी विद्वान और दार्शनिक टॉलस्टॉय जीवन और मृत्यु पर बोल रहे थे। जो लोग टॉलस्टॉय को सुन रहे थे, उन्होंने कहा, ‘आप हमेशा जो भी बात करते हैं, उसमें जीवन या मृत्यु का जिक्र जरूर करते हैं। तो क्या आपको जीवन-मृत्यु से इतना प्रेम है? इसलिए आप अलग-अलग ढंग से इनकी व्याख्या करते हैं।’
टॉलस्टॉय ने कहा, ‘मैंने बड़े भाई को टीबी से मरते देखा था और मैं उस दृश्य को भूला नहीं सका हूं। समय-समय मेरे पारिवारिक जीवन में ऐसी स्थितियां बनी हैं कि एक बार तो मेरा मन आत्महत्या करने का हो रहा था। फिर मैंने जीवन का अर्थ समझा। इसके बाद मैं जीवन और मृत्यु को इस किस्से से समझाता हूं, एक बार एक व्यक्ति कहीं जा रहा था और उसके सामने एक पागल हाथी आ गया। हाथी से बचने के लिए व्यक्ति दौड़ा तो वह एक कुएं में गिर गया। गिरते समय उसने कुएं में उगे हुए एक पेड़ की डाल पकड़ ली।
उस व्यक्ति ने कुएं में नीचे देखा तो वहां एक मगरमच्छ था। मगरमच्छ को देखकर वह व्यक्ति और ज्यादा घबरा रहा था। उस पेड़ में मधुमक्खी का एक छत्ता था। उसमें से शहद की बूंदें गिर रही थीं। पेड़ की डाल पर लटकते हुए उस व्यक्ति ने मुंह खोला तो शहद की बूंदें उसके मुंह में गिरने लगीं तो वह शहद पीने लगा। तभी उसने देखा कि दो चूहे एक सफेद और एक काला, दोनों पेड़ की जड़ को कुतर रहे हैं। ये सब देखकर उस व्यक्ति को समझ नहीं आ रहा था कि ये सब क्या हो रहा है?’
ये कहानी सुन रहे लोगों ने टॉलस्टॉय से पूछा कि आप इस कहानी के माध्यम से क्या कहना चाहते हैं?
टॉलस्टॉय बोले, ‘इस कहानी में जो हाथी है, वह काल है। व्यक्ति को काल का धक्का लगा। मगरमच्छ साक्षात मृत्यु का प्रतीक है। शहद की बूंदें जीवन का रस हैं। जो चूहे पड़े की जड़ को कुतर रहे थे वे दिन और रात हैं। बस इसी तरह हमारा जीवन चलता है। कभी आशा, कभी निराशा। जीवन-मृत्यु के बीच जितने अच्छे-बुरे अवसर आते हैं, हमें सभी का रसपान करना चाहिए यानी आनंद लेना चाहिए।’
सीख
सुख-दुख सभी के जीवन में आते-जाते रहते हैं। कोरोना महामारी के पिछले दो सालों में जीवन-मृत्यु आमने-सामने खड़े थे। हमें जीवन के हर एक पल का आनंद लेना चाहिए। हर परिस्थिति में सकारात्मक रहेंगे तो जीवन में शांति बनी रहेगी।