सीख; एक बार एक व्यक्ति स्वामी विवेकानंद जी से बहस करने लगा, स्वामी जी उससे बड़ी विनम्रता के साथ बात कर रहे थे, क्योंकि उस व्यक्ति ने सन्यासी के कपड़े पहने हुए थे, दरअसल वह व्यक्ति गौ रक्षा के बारे में बात कर रहा था………
स्वामी विवेकानंद जी से एक व्यक्ति बहस कर रहा था। स्वामी जी उसके साथ बड़े संयम के साथ बातें कर रहे थे, क्योंकि वह व्यक्ति संन्यासी के वेश में था।
वह संन्यासी गौ रक्षा की बात कर रहा था। वह कह रहा था, ‘गौमाता को लोग कसाइयों को बेच देते हैं। हम लोग उन कसाइयों से गायों वापस ले लेते हैं और उनका संरक्षण करते हैं।’
स्वामी जी ने पूछा, ‘गाय पालने के लिए आपके पास क्या साधन हैं? आप धन कहां से लाते हैं?’
गौ रक्षक बोला, ‘आप जैसे लोग दान करते हैं और मैं आपके पास भी इसलिए आया हूं कि आप समर्थ हैं, आपके कहने में बहुत से लोग हैं।’
स्वामी जी बोले, ‘मेरा आपसे निवेदन है कि गौमाता की रक्षा होनी ही चाहिए, लेकिन आप थोड़ा ध्यान लाचार लोगों पर भी लगाइए। मध्य भारत में जो अकाल पड़ा है, वहां लाखों लोग भूखे हैं, उन भूखे लोगों के लिए भोजन की व्यवस्था करें। हमें मनुष्य और गौमाता, दोनों में संतुलन बनाए रखना है।’
गौ रक्षक ने तुरंत बोल दिया, ‘सभी अपने-अपने कर्मों का फल भोग रहे हैं। लोगों ने पाप किए होंगे तो भूखे मर रहे हैं।’
स्वामी जी बोले, ‘आप जैसे व्यक्ति को ऐसे बात नहीं करनी चाहिए। अपनी बात में संशोधन करना चाहिए। अगर हम पाप का ही परिणाम मान लें तो गौ माता क्यों कट रही हैं, गौ माता तो बड़ी शुद्ध हैं। हम जैसे लोगों को समझकर सभी जीव-जंतुओं और इंसानों की रक्षा करनी चाहिए।’
सीख – हमें हर एक प्राणी के लिए अहिंसक रहना चाहिए। गाय पूजनीय प्राणी है, उसकी रक्षा करें, लेकिन उन लोगों के लिए प्रयास करें जो जरूरतमंद हैं। इस बात का ध्यान रखेंगे तो जीव-जंतुओं और मनुष्यों का संतुलन प्रकृति में बना रहेगा।