सीख; एक रोड के किनारे एक बूढ़ी महिला खड़ी हुई थी, उसके पास एक गट्ठर था, वो महिला आने-जाने वाले लोगों से मदद मांग रही थी कि कोई उस गट्ठर को उठाकर उसके सिर पर………

मुंबई में एक बूढ़ी महिला किसी रोड पर खड़ी थी। उसके पास एक गट्ठर था। उस समय मुंबई को बंबई कहते थे। वह महिला आने-जाने वाले लोगों से मदद मांग रही थी कि कोई उस गट्ठर को उठाकर उसके माथे पर रखवा दे।

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कोई भी व्यक्ति उस महिला की मदद करने के लिए तैयार नहीं था। कुछ देर बाद वहां से एक बहुत धनवान दिखने वाले सज्जन व्यक्ति गुजर रहे थे। उस बूढ़ी महिला ने उस धनी व्यक्ति से भी मदद मांगनी चाही, लेकिन डर की वजह से वह कुछ बोली नहीं।

वह सज्जन व्यक्ति समझ गए कि ये बूढ़ी महिला कुछ कहना चाहती है, लेकिन कह नहीं पा रही है। उस सज्जन ने बूढ़ी महिला से पूछा तो वह बोली, ‘कोई इस गट्ठर को मेरे सिर पर रख दे, ऐसा आग्रह मैं बहुत लोगों से कर चुकी हूं, लेकिन किसी ने मेरी मदद नहीं की। आपसे तो कहने में भी डर लग रहा है।’

तब तक तो वह सज्जन झुके और गट्ठर उठाकर उस बूढ़ी महिला के सिर पर रखवा दिया। कई लोग रुक कर इन दोनों को देख रहे थे। लोग उस सज्जन व्यक्ति को पहचान गए थे कि ये कोई सामान्य व्यक्ति नहीं है, बल्कि जस्टिस महादेव गोविंद रानाडे हैं।

रानाडे जी ने लोगों से कहा, ‘पहली बात तो ये है कि ये एक महिला हैं और दूसरी बात ये वृद्ध भी हैं। स्त्रियां पुरुषों से श्रेष्ठ होती हैं, क्योंकि उनके पास सृजन करने की क्षमता है। उनके पास गर्भाशय है, जहां वे सुंदर बोझ सहती हैं और संतान पैदा करती हैं। हमें उनकी मदद जरूर करनी चाहिए।’

ये बातें सुनकर वहां खड़े लोगों की गर्दन नीचे हो गई। ये वही गोविंद रानाडे जी थे, जिन्होंने विधवा पुनर्विवाह और महिला शिक्षा पर खूब काम किया था। ये घटना करीब 130 साल पुरानी है। रानाडे जी की पत्नी रामाबाई कम उम्र की थीं और कम पढ़ी-लिखी थीं। उन्होंने रामाबाई को पढ़ने के लिए बहुत प्रेरित किया था।

रानाडे जी की मृत्यु के बाद उनकी पत्नी रामाबाई ने ही उनके कामों को आगे बढ़ाया था।

सीख

रानाडे जी ने हमें शिक्षा दी है कि समाज में महिला-पुरुष का भेद खत्म होना चाहिए। स्त्रियों को सम्मान देना चाहिए और उन्हें पूजनीय दृष्टि से देखना चाहिए।

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