सीख; गांव के लोग अपनी परेशानियां लेकर इन संतों के आश्रम में आते थे, दोनों ही संत अपने-अपने तरीके से परेशान लोगों को समाधान भी बताते थे, दुखी संत…….

एक लोक कथा के अनुसार पुराने समय दो संत हमेशा साथ रहते थे। दोनों एक ही आश्रम में रहते थे। एक का नाम सुखी और दूसरे का नाम दुखी था। संत सुखी हर हाल में सुखी रहता था, जबकि दूसरा संत हमेशा दुखी रहता था, इस कारण उसका नाम दुखी रख दिया गया था।

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> गांव के लोग अपनी परेशानियां लेकर इन संतों के आश्रम में आते थे। दोनों ही संत अपने-अपने तरीके से परेशान लोगों को समाधान भी बताते थे। दुखी संत के समाधान भी बहुत अच्छे होते थे, जिनसे लोगों की चिंताएं दूर हो जाती थीं। दोनों ही संतों की जीवन शैली भी एक समान थी, लेकिन विचार एकदम अलग थे।

> दुखी संत अपने दुखों का कारण समझ नहीं पा रहा था। एक दिन वह अपने गुरु के पास गया और उनसे ये प्रश्न पूछा कि लोगों ने मेरे चेहरे के हाव-भाव को देखकर मेरा नाम ही दुखी रख दिया है। मैं भी संत सुखी की तरह ही दैनिक पूजा-पाठ करता हूं, हर काम ईमानदारी से करता हूं, फिर भी मेरे जीवन में दुख ही दुख क्यों है?

> गुरु ने दुखी संत से कहा कि तुम दोनों एक जैसे काम करते हो, लेकिन दोनों के सुख-दुख के भाव अलग-अलग हैं। सुखी संत का मन हमेशा शांत रहता है, वह संतोषी है। उसे खुद पर भरोसा है कि वह बड़ी से बड़ी परेशानियों को आसानी दूर कर सकता है। इसीलिए हमेशा सुखी रहता है। जबकि तुम हर हाल में अशांत रहते हो, परिणाम को लेकर कभी भी संतुष्ट नहीं होते। तुम्हें खुद पर भरोसा ही नहीं है, इस कारण तुम दुखी रहते हो।

कथा की सीख

इस कथा की सीख यह है कि मन की शांति और आत्मविश्वास ही व्यक्ति को बड़ी-बड़ी परेशानियों से बाहर निकाल सकता है। जिन लोगों का आत्मविश्वास कमजोर होता है, वे हमेशा दुखी रहते हैं। इसीलिए हमें खुद पर भरोसा करना चाहिए और मन शांत रखकर काम करना चाहिए। तभी सफलता मिलती है और सुखी रह पाते हैं।

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