सीख; द्रौपदी के स्वयंवर में श्रीकृष्ण अर्जुन को समझाते हैं कि क्या करना है, तब अर्जुन कहते हैं कि सब मैं ही करूंगा तो आप क्या करेंगे, श्रीकृष्ण बोले कि तुम वो करो जो तुम्हारे वश में है, मैं वो करूंगा जो…….
द्रौपदी के स्वयंवर में श्रीकृष्ण अर्जुन को समझाते हैं, तब अर्जुन कहते हैं कि सब मैं ही करूंगा तो आप क्या करेंगे, श्रीकृष्ण बोले कि तुम वो करो जो तुम्हारे वश में है, मैं वो करूंगा जो तुम्हारे वश में नहीं है
प्रचलित कथा के अनुसार दुर्योधन ने सभी पांडवों को मारने के लिए लाक्षागृह की रचना की थी। इस षड़यंत्र से पांडव बच गए और वेश बदलकर वन में रहने लगे थे। उस समय राजा द्रुपद ने द्रौपदी का स्वयंवर आयोजित किया। इस आयोजन में पांडव में भी ब्राह्मणों के वेश में पहुंचे थे। दरबार में श्रीकृष्ण भी उपस्थित थे और वे ब्राह्मण रूप में सभी पांडवों को पहचान गए थे। स्वयंवर में यौद्धा को भूमि पर रखे पानी में देखकर छत पर घूम रही मछली की आंख पर निशाना लगाना था। इस शर्त को पूरी करने वाले यौद्धा से द्रौपदी का विवाह होना था।
जब अर्जुन इस प्रतियोगिता में शामिल होने पहुंचे तो श्रीकृष्ण ने उन्हें समझाया कि कैसे मछली की आंख में निशाना लगाना है। ये सुनकर अर्जुन ने कहा कि अगर सब मुझे ही करना है तो आपकी क्या आवश्यकता है। तब श्रीकृष्ण ने कहा कि तुम वो करो जो तुम्हारे वश में है और मैं वह करूंगा जो तुम्हारे वश में नहीं है यानी मैं हिलते हुए पानी को स्थिर करूंगा ताकि तुम्हें निशाना लगाने में परेशानी न हो। तुम सिर्फ बेहतर से बेहतर करने की कोशिश करो।
महाभारत के अन्य प्रसंग में अर्जुन को जयद्रथ का वध करना था और सूर्यास्त होने ही वाला था, तब सूर्य ग्रहण करके सूर्यास्त का भ्रम पैदा कर श्रीकृष्ण ने जयद्रथ को बाहर आने पर मजबूर कर दिया। जैसे ही ग्रहण हटा अर्जुन ने जयद्रथ का वध कर दिया। यहां भी अर्जुन ने सिर्फ अपना काम किया और उसका श्रीकृष्ण के हाथ में ही था।
इन प्रसंगों की सीख यह है कि हमें सिर्फ बेहतर से बेहतर कोशिश करनी चाहिए, क्योंकि लक्ष्य पूरा होगा या नहीं ये तो भगवान के हाथ में ही है। अगर हम धर्म के रास्ते पर ईमानदारी से कोशिश करेंगे तो भगवान की कृपा से हमें सफलता जरूर मिलेगी।