सीख; नैमिष वन में हजारों साधु-संत रह रहे थे। सभी साधु-संत सूत जी को ऊंचे आसन पर बैठाकर उनसे कथा सुनते थे, एक दिन कुछ साधुओं ने सूत जी से पूछा, ‘हमारी जीवन शैली में…….

नैमिष वन में हजारों साधु-संत रह रहे थे। सभी साधु-संत सूत जी को ऊंचे आसन पर बैठाकर उनसे कथा सुनते थे। सूत जी की विशेषता थी कि वे हर प्रसंग को जीवन से जोड़कर बहुत ही विस्तार से समझाते थे। सुनने वाले सभी लोगों तक प्रसंग का संदेश पहुंच जाता था। कभी-कभी कुछ लोग उनसे प्रश्न भी पूछते थे।

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एक दिन कुछ साधुओं ने सूत जी से पूछा, ‘हमारी जीवन शैली में सबसे अच्छी बात क्या होनी चाहिए?’

सूत जी ने कहा, ‘इंसान खुद के लिए तपस्या करता है, लेकिन दूसरों के लिए भी कुछ न कुछ सोचना चाहिए। दूसरों के भले के लिए हम जो कुछ करते हैं, उसे दान कहा जाता है। दान को लोग पाप और पुण्य से जोड़ते हैं। दान का अर्थ है अगर सामने वाले की कोई जरूरत है तो उसकी पूर्ति हो जाए। सोने का दान, गाय का दान, भूमि दान, तुला दान यानी अपने वजन के बराबर वस्तुओं का दान, ये सभी पवित्र दान माने जाते हैं। इनके साथ ही एक दान और बहुत खास है, सरस्वती यानी शिक्षा का दान। दान देने वाले को सुख-शांति मिलती है।’

सूत जी आगे कहते हैं, ‘जरूरत मंद लोग पढ़ सकें, ऐसा दान उत्तम कहा गया है। इसलिए विद्यालय बनाना चाहिए। ऐसे काम करने चाहिए, जिनकी वजह से लोगों को आसानी से शिक्षा मिल जाए।’

सीख

जो लोग निरक्षर हैं, उनके जीवन में कई तरह की समस्याएं आती हैं। इसलिए ऐसे लोगों को शिक्षित करने में मदद करनी चाहिए, जो शिक्षित नहीं हैं। लोग पढ़-लिख लेते हैं तो उन्हें हर जगह मान-सम्मान मिलता है। अगर हम समर्थ हैं तो ऐसे काम करें, जिनकी वजह से लोग की अज्ञानता दूर हो जाए।

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