सीख; पांडव सेना में अधिकतर लोगों ने ये मान लिया था कि कौरव सेना के सामने पांडव ज्यादा दिनों तक टिक नहीं पाएंगे, संख्या के लिहाज……..

कौरव और पांडवों का युद्ध शुरू होने वाला था। कौरव पक्ष में भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य, कर्ण, अश्वत्थामा, श्रीकृष्ण की अजेय नारायणी सेना और कई महारथी थे। दूसरी और पांडवों की सेना में पांचों पांडवों और कुछ ही महारथी थे। श्रीकृष्ण अर्जुन के सारथी बने थे और उन्होंने युद्ध में शस्त्र न उठाने की प्रतिज्ञा ली थी।

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कौरवों की अपेक्षा पांडवों की सेना बहुत कम थी। उस समय पांडव सेना में अधिकतर लोगों ने ये मान लिया था कि कौरव सेना के सामने पांडव ज्यादा दिनों तक टिक नहीं पाएंगे। संख्या के लिहाज से ऐसा सही भी लग रहा था। कौरवों की जीत आसान दिख रही थी।

इन सारी बातों की वजह से पांडव सेना में उत्साह ही नहीं था, अधिकतर लोग निराश थे। उस समय अर्जुन ने अपनी सेना को समझाया कि हमें सिर्फ पूरी ईमानदारी से प्रयास करना चाहिए। संख्या के बारे में नहीं सोचना चाहिए। संख्या में भले ही हम कम हैं, लेकिन हमारे साथ स्वयं श्रीकृष्ण हैं, हम धर्म के लिए युद्ध कर रहे हैं, इसलिए हमें निडर होकर युद्ध करना चाहिए।

अर्जुन की ये बातें सुनकर पांडव सेना में उत्साह लौट आया। हर एक सैनिक पूरे उत्साह के साथ युद्ध लड़ने के लिए तैयार हो गया। जब युद्ध शुरू हुआ तो श्रीकृष्ण ने अपनी नीतियों के जरिए पांडवों को जीत दिलवा दी। कौरवों की विशाल सेना पराजित हो गई।

जीवन प्रबंधन

यहां बताई गई अर्जुन की बातें हमारे लिए भी बहुत काम की हैं। काम कैसा भी हो, अगर हम शुरुआत में ही निराश हो जाएंगे तो उस काम में सफलता मिलना मुश्किल हो जाएगा। उत्साह के साथ किए गए काम की वजह से हमें सफलता मिलने की संभावनाएं काफी बढ़ जाती हैं। इसलिए हमें सकारात्मक सोच और उत्साह के साथ ही काम करना चाहिए।

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