सीख; भगत सिंह ने बटुकेश्वर दत्त को पत्र लिखा था कि भले ही हम इस संसार से चले जाएं, लेकिन जीवित रहकर भी देश के लिए संघर्ष किया जा सकता है जो तुम्हें करना है, बाद में देश आजाद हो गया……..
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बटुकेश्वर दत्त बीमार हो गए थे। एक दिन कुछ लोग उनसे मिलने आए तो उन्होंने कहा, ‘जब भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी हुई तो मैं भी उनके साथ था, लेकिन मुझे कालेपानी की सजा दी गई। उस समय मैं बहुत दुखी था कि मुझे फांसी क्यों नहीं दी गई। मेरे दोस्त मेरे सामने इस दुनिया से जा रहे थे।
भगत सिंह ने मुझे पत्र लिखा था कि भले ही हम इस संसार से चले जाएं, लेकिन जीवित रहकर भी देश के लिए संघर्ष किया जा सकता है जो तुम्हें करना है। बाद में देश आजाद हो गया।
मैंने आजाद भारत में छोटे-मोटे कई काम किए, लेकिन मैंने कभी ये नहीं सोचा कि लोग मुझे सेनानी के रूप में पहचानें। अब जब मैं बीमार हो गया हूं तो आप लोगों की मदद से राज्य और केंद्र सरकार ने सारी व्यवस्था कर दी है।’
इतना कहकर बटुकेश्वर दत्त कहीं गहराई से कुछ देखने लगे।
उस समय इस बात की बहुत चर्चा होती थी कि ऐसे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी को भी आजादी बाद कैसा संघर्ष करना पड़ा। बाद में लोग जागे और उनकी मदद की गई।
सीख
इस किस्से से हमें दो संदेश मिलते हैं। पहला, बटुकेश्वर दत्त से सीख सकते हैं कि अच्छे काम करने वाले लोग कभी भी किसी से कोई अपेक्षा नहीं करते हैं। उनके लिए अच्छे काम ही ज्यादा महत्वपूर्ण होते हैं। दूसरा संदेश ये है कि जिन लोगों ने देश, समाज और परिवार के लिए अच्छे काम किए हैं, जब उनके जीवन में परेशानियां आएं, उन्हें किसी चीज की जरूरत हो तो हमें उनकी मदद जरूर करनी चाहिए। समाज सेवा करने वालों की सबसे बड़ी सेवा यही है कि हम उनके लिए कुछ कर सकें।