सीख; भद्रा ने घोषणा कर दी थी कि मैं पति के शव को नहीं छोडूंगी और पति की आत्मा के पीछे-पीछे यमलोक तक जाऊंगी, भद्रा सती महिला थीं और तपस्विनी भी थीं, यमराज को लगा कि भद्रा की वजह से तो यमलोक में दिक्कतें…….
महाभारत के समय का किस्सा है। पुरु वंश में व्यूशिताश्व नाम के एक राजा थे, उन्होंने एक ऐसा यज्ञ किया था, जिससे इंद्र और अन्य सभी देवता बहुत प्रसन्न हो गए। यज्ञ के पुण्य से राजा व्यूशिताश्व की प्रतिष्ठा बहुत बढ़ गई थी।
राजा व्यूशिताश्व की पत्नी थीं भद्रा। राजा का वैवाहिक जीवन बहुत प्रेमपूर्ण था। उस समय राजा को राजयक्ष्मा (टीबी) नाम की बीमारी हो गई। इस बीमारी की वजह से राजा का देहांत हो गया। उनकी कोई संतान नहीं थी। विधवा भद्रा ने रोते हुए कह रही थीं कि मुझे संतान दिए बिना मेरे पति इस संसार से चले गए।
भद्रा ने घोषणा कर दी थी कि मैं पति के शव को नहीं छोड़ेगी और पति की आत्मा के पीछे-पीछे यमलोक तक जाऊंगी। भद्रा सती महिला थीं और तपस्विनी भी थीं। यमराज को लगा कि भद्रा की वजह से तो यमलोक में दिक्कतें हो जाएंगी।
भद्रा की घोषणा की वजह से आकाशवाणी हुई कि तुम अपने पति के शव के साथ मानसिक रूप से समागम करो और संकल्प लो कि इनसे तुम्हें संतान हो जाए। आकाशवाणी की बात मानकर भद्रा ने ऐसा ही किया। उस मानसिक संकल्प से भद्रा ने सात पुत्रों को जन्म दिया और सभी पुत्र प्रतिष्ठित राजा बने थे।
सीख
इस किस्से का संदेश ये है कि पति-पत्नी के बीच सिर्फ शरीर का आकर्षण नहीं होना चाहिए। पति-पत्नी को एक-दूसरे की आत्मा से जुड़ाव रखना चाहिए। संतान पैदा करना एक शुभ संकल्प है, ये केवल शारीरिक प्रेम की बात नहीं है। पति-पत्नी एक-दूसरे की आत्मा को जानेंगे, आचरण और संकल्प शुद्ध रखेंगे तो ऐसी संतान पैदा होगी जो श्रेष्ठ और संस्कारी होगी, साथ ही वैवाहिक जीवन में सुख-शांति बनी रहेगी।