सीख; महाभारत युद्ध में पांडवों ने कौरवों को हरा दिया था और युधिष्ठिर राजा बन गए थे, उस समय भीष्म पितामह बाणों की शय्या पर लेटे हुए थे और प्राण त्यागने के लिए सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा कर रहे थे, भीष्म…..
दुख सभी के जीवन में आते-जाते रहते हैं और दुख के समय में साधु-संत भक्ति करने की सलाह देते हैं। भक्ति करने का अर्थ ये नहीं है कि जीवन में दुख आएंगे ही नहीं, दुख आने होंगे तो आएंगे ही, लेकिन भक्ति करने से उन दुखों से लड़ने का साहस बना रहेगा। भक्ति से हमारी बुद्धि सकारात्मक रहती है, मुश्किल समय में भी मन प्रसन्न रहता है। ये बात पांडवों के जीवन से समझ सकते हैं।
महाभारत युद्ध के बाद का किस्सा है। पांडवों ने कौरवों को हरा दिया था और युधिष्ठिर राजा बन गए थे। उस समय भीष्म पितामह बाणों की शय्या पर लेटे हुए थे और प्राण त्यागने के लिए सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा कर रहे थे। भीष्म के पूरे शरीर पर तीर लगे हुए थे।
एक दिन श्रीकृष्ण पांडवों के साथ भीष्म से मिलने पहुंचे। श्रीकृष्ण ने भीष्म से कहा कि आप पांडवों को राजधर्म का ज्ञान दें, ताकि ये अपना राज-पाठ अच्छी तरह चला सके।
बातचीत करते समय पांडवों ने देखा कि भीष्म पितामह की आंखों में आंसू आ गए थे। पांडवों को इस बात की हैरानी हुई कि भीष्म पितामह जैसे महारथी को भी मृत्यु का डर सता रहा है, इस वजह से इनकी आंखों में आंसु आ गए हैं। जबकि इन्हें तो इच्छामृत्यु का वरदान मिला हुआ है।
पांडवों के मन की बात समझकर श्रीकृष्ण ने भीष्म पितामह से पूछा कि आपकी आंखों में आंसू क्यों हैं?
श्रीकृष्ण का प्रश्न सुनकर भीष्म ने कहा कि आप तो सब कुछ जानते हैं, मैं पांडवों को भी बता देता हूं। मेरी आंखों में आंसू पांडवों को देखकर आ गए। पांडवों पुत्रों के साथ स्वयं श्रीकृष्ण साथ हैं। फिर भी इनके जीवन में लगातार दुख आते रहे। कदम-कदम पर पांडवों के जीवन में मुश्किलें आईं। इन्हें देखकर मुझे समझ आया कि अगर हमारे भगवान हैं, तब भी इसका मतलब ये नहीं है कि हमारे जीवन में नहीं आएंगे। दुख तो आएंगे, लेकिन भगवान की मदद से हम दुखों का सामना पूरे साहस के साथ कर पाते हैं। भक्ति करेंगे तो भगवान हमें दुखों से लड़ने का साहस देंगे।
भीष्म पितामह की सीख
इस किस्से में भीष्म ने संदेश दिया है कि जो लोग ये सोचकर पूजा-पाठ करते हैं कि भगवान की कृपा से उनके जीवन में दुख नहीं आएंगे तो ये सोच गलत है। पांडवों के जीवन में तो स्वयं भगवान श्रीकृष्ण थे, फिर भी उनके जीवन में दुख थे। भक्ति करेंगे तो भगवान की कृपा से दुखों को दूर करने का साहस बना रहेगा। विचार सकारात्मक रहेंगे और प्रसन्नता बनी रहेगी।