सीख; मीरा बाई बहुत ही सुंदर पद गा रही थीं, सुनने वालों में उस समय वहां एक संगीतज्ञ भी उपस्थित था, उसने मीरा बाई के गायन पर आपत्ति ली, संगीतज्ञ ने कहा, ‘मीरा आपको राग में गाना चाहिए…….
मीरा बाई का गायन पूरी तरह भक्ति में डूबा हुआ था। वे बहुत ही सुंदर पद गा रही थीं। सुनने वालों को भी आनंद आ रहा था। उस समय वहां एक संगीतज्ञ भी उपस्थित था, उसने मीरा बाई के गायन पर आपत्ति ली।
संगीतज्ञ ने कहा, ‘मीरा आपको राग में गाना चाहिए और राग भी ठीक होना चाहिए। ये आप क्या गा रही हैं?’
वहां बैठे सभी लोग संगीतज्ञ की बात सुनकर चौंक गए। मीरा ने मुस्कान के साथ उनकी बात सुनी, लेकिन कुछ कहा नहीं। मीरा ने आंखें बंद करके अपना गायन चालू रखा। उनकी वाणी बहुत मधुर थी।
विद्वान संगीतज्ञ ने फिर से आपत्ति उठाई कि राग में गाओ। अब मीरा ने गाना रोका और कहा, ‘मैं खुद राग में नहीं गाना चाहती। मैं तो अपने गिरधर गोपाल के अनुराग में गा रही हूं। अगर मैं राग में गाऊंगी तो पूरी दुनिया मुझे सुनेगी, लेकिन अगर मैं अनुराग में गाऊंगी तो सिर्फ मेरा गिरधर मुझे सुनेगा। जिसे रिझाने के लिए मैं गाती हूं, उसे राग से क्या लेना-देना।’
संगीतज्ञ को मीरा की बातें समझ आ गईं कि कंठ से गायन और हृदय से गायन में क्या अंतर है।
सीख
इस पूरी घटना में हमें एक संदेश ये मिलता है कि भक्ति करते समय भजन-कीर्तन भगवान से संवाद करने के माध्यम हैं। जब ये संवाद किया जाए तो पूरी एकाग्रता के साथ करना चाहिए। इसमें सांसारिक बातों को भूल कर सिर्फ भगवान की ओर ध्यान लगाना चाहिए, तभी भक्ति में आनंद मिलता है।