सीख; रावण लगातार खुद को बलवान बताने की और अंगद की खिल्ली उड़ाने की कोशिश कर रहा था, अंगद ने सोचा कि मैं दूत बनकर आया हूं तो मुझे युद्ध नहीं करना है, मैं ऐसा क्या करूं कि बिना प्रहार किए……..
रामायण में युद्ध से ठीक पहले की घटना है। रावण के दरबार में बड़े-बड़े देवता आंखें नीचे करके खड़े हुए थे। अंगद और रावण की बात चल रही थी। अंगद रावण के प्रश्नों का उत्तर दे रहे थे। जहां रावण ऊंचा बोलता, वहां अंगद भी ऊंचा बोल रहे थे।
रावण लगातार खुद को बलवान बताने की और अंगद की खिल्ली उड़ाने की कोशिश कर रहा था। अंगद ने सोचा कि मैं दूत बनकर आया हूं तो मुझे युद्ध नहीं करना है। मैं ऐसा क्या करूं कि बिना प्रहार किए भी हिंसा के जैसा प्रभाव हो जाए।
कुछ देर सोचने के बाद अंगद ने अपनी दोनों भुजाएं उठाईं और तेजी से धरती पर दे मारीं तो रावण का दरबार हिल गया। वहां बैठे हुए लोग सिंहासन से नीचे गिर गए। रावण भी डगमगाने लगा और जैसे ही रावण नीचे गिरा तो उसके सिर से मुकुट भी नीचे गिर गए। कुछ मुकुट तो रावण ने उठा लिए और कुछ अंगद ने राम जी की ओर फेंक दिए।
दूसरी ओर राम जी की सेना के वानर मुकुट देखकर डर गए। श्रीराम ने सभी से कहा, ‘डरो मत, ये तो अंगद ने भेजे हैं।’
लंका में रावण अंगद से लगातार बहस ही कर रहा था। तब अंगद ने धरती पर अपना पैर ठोंका और कहा, ‘अगर कोई मेरा पैर हटा देगा तो राम जी लौट जाएंगे, मैं सीता जी को हार जाऊंगा।’
रावण की सभा में बैठे सभी लोगों ने अंगद का पैर हटाने की कोशिश की, लेकिन कोई भी सफल नहीं हुआ। तब रावण खुद अंगद का पैर हटाने के लिए नीचे झुका तो अंगद ने कहा, ‘मेरे पैर मत छुओ, पैर में ही गिरना है तो श्रीराम के पैरों में गिरो।’
सीख
यहां अंगद ने अपनी भुजाओं और पैरों से बिना कोई हिंसा किए रावण के ऊपर ऐसा प्रहार किया कि दरबार में मौजूद सभी लोग डर गए। काम करने का ये भी एक ढंग है। अगर हम अपना प्रभाव स्थापित करना चाहते हैं तो हिंसा करने की जरूरत नहीं है, हम अपनी कार्य शैली और व्यक्तित्व से भी दूसरों को प्रभावित कर सकते हैं।