सीख; विक्रमादित्य तुरंत महल से बाहर निकले और एक खेत पर देखा कि एक किसान ठंड में फसल की रखवाली करते हुए सो गया है, विक्रमादित्य ने सोचा कि अपनी फसल के लिए इसका समर्पण है, उन्होंने…….
विक्रम संवत की शुरुआत राजा विक्रमादित्य ने की थी। एक दिन राजा विक्रम अपने गुरु के पास बैठे हुए थे। गुरु ने विक्रमादित्य से पूछा, ‘बताओ राजा आप आज किस विशेष उद्देश्य से आए हैं?’
विक्रमादित्य ने कहा, ‘मुझे आप कोई ऐसा एक मंत्र बता दें, जिसे मैं भी ध्यान रखूं और मेरी आगे आने वाली पीढ़ी भी ध्यान रखें। गुरु ने संस्कृत में एक श्लोक लिखकर राजा को दे दिया। उस श्लोक का अर्थ था कि दिनभर की व्यस्तता के बाद जब रात में सोने जाओ तो ये विचार करो कि हमने आज दिनभर में जो जीवन जिया है, वह पशुओं की तरह था या मनुष्य की तरह आज कोई अच्छा काम भी किया है। अगर कोई अच्छा काम नहीं किया है तो तुम्हें आज की रात सोने का क्या अधिकार है?’
राजा ने अपने सिंहासन पर ये श्लोक लिखवा लिया और इसके बाद हर रोज वे इस मंत्र को याद रखते थे। रात को सोने से पहले विचार करते कि आज मैंने कोई सद्कर्म किया है या नहीं? एक दिन वे दिनभर के कामों में बहुत व्यस्त थे, पूरा दिन गुजर गया और रात में सोने का समय हो गया। सोने से पहले उन्हें ध्यान आया कि आज का मेरा सद्कर्म क्या है? विक्रमादित्य ने बहुत सोचा, लेकिन उन्हें कोई अच्छा काम याद नहीं आया।
विक्रमादित्य तुरंत महल से बाहर निकले और एक खेत पर देखा कि एक किसान ठंड में फसल की रखवाली करते हुए सो गया है। विक्रमादित्य ने सोचा कि अपनी फसल के लिए इसका समर्पण है। उन्होंने तुरंत ही अपनी गर्म शाल उस किसान को ओढ़ा दी। महल आकर उन्होंने याद किया कि आज मैंने मानवता की मदद की है और इसके बाद वे सो सके।
सीख
विक्रमादित्य का ये आचरण हमें संदेश दे रहा है कि हमें दिनभर इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हम अच्छे काम करते रहें। रात में सोने से पहले अपने अच्छे कामों का हिसाब जरूर करना चाहिए।